विश्वेश्वर स्तोत्रम् ( Vishveshwara Stotram ) Sri Vishveshwara Stotra

विश्वेश्वर स्तोत्रम् [ Vishveshwara Stotram & Sri Vishveshwara Stotra ]

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श्री विश्वेश्वर स्तोत्रम !! sri vishveshwara stotra in hindi

॥ विश्वेश्वरस्तोत्रम् ॥

॥ श्रीगणेशाय नमः ॥

विश्वानर उवाच ।

एकं ब्रह्मैवाद्वितीयं समस्तं सत्यं सत्यं नेह नानाऽस्ति किं तु ।

एको रुद्रो न द्वितीयोऽवतस्थे तस्मादेकं तत्त्वां प्रपद्ये महेशम् ॥ १॥

एकः कर्ता त्वं हि सर्वस्य शम्भो नानारूपेष्वेकरूपोऽप्यरूपः ।

यद्वत्प्रत्यग्धर्म एकोऽप्यनेकस्तस्मान्नान्यं त्वां विनेशं प्रपद्ये ॥ २॥

रज्जौ सर्पः शुक्तिकायां च रौप्यं नैरः पूरस्तन्मृगाख्ये मरीचौ ।

यद्यत्तद्वद्विष्वगेषः प्रपञ्चो यस्मिन् ज्ञाते त्वां प्रपद्ये महेशम् ॥ ३॥

तोये शैत्यं दाहकत्वं च वह्नौ तापो भानौ शीतभानौ प्रसादः ।

पुष्पे गन्धो दुग्धमध्येऽपि सर्पिर्यत्तच्छम्भो त्वं ततस्त्वां प्रपद्ये ॥ ४॥

शब्दं गृह्णास्यश्रवास्त्वं हि जिघ्रेरघ्राणस्त्वं व्यङ्घ्रिरायासि दूरात् ।

व्यक्षः पश्येस्त्वं रसज्ञोऽप्यजिह्वः कस्त्वां सम्यग्वेत्त्यतस्त्वां प्रपद्ये ॥ ५॥

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नो वेदस्त्वामीश साक्षाद्विवेदो नो वा विष्णुर्नो विधाताऽखिलस्य ।

नो योगीन्द्रा नेन्द्रमुख्याश्च देवा भक्तो वेदस्त्वामतस्त्वां प्रपद्ये ॥ ६॥

नो ते गोत्रं नापि जन्मापि नाख्या नो वा रूपं नैव शीलं न तेजः ।

इत्थं भूतोऽपीश्वरस्त्वं त्रिलोक्याः सर्वान्कामान्पूरयेस्त्वं भजे त्वाम् ॥ ७॥

त्वत्तत्सर्वं त्वं हि सर्वं स्मरारे त्वं गौरीशस्त्वं च नग्नोऽतिशान्तः ।

त्वं वै वृद्धस्त्वं युवा त्वं च बालस्तत्किं यत्त्वं नास्यतस्त्वां नतोऽहम् ॥ ८॥

स्तुत्वेति भूमौ निपपात विप्रः स दण्डवद्यावदतीव हृष्टः ।

तावत्स बालोऽखिलवृद्धवृद्धः प्रोवाच भूदेव वरं वृणीहि ॥

तत उत्थाय हृष्टात्मा मुनिर्विश्वानरः कृती ।

प्रत्यब्रवीत्किमज्ञातं सर्वज्ञस्य तव प्रभो ॥

सर्वान्तरात्मा भगवान्सर्वः सर्वप्रदो भवान् ।

यात्राप्रतिनियुक्ते मां किमीशो दैन्यकारिणीम् ।

इति श्रुत्वा वचस्तस्य देवो विश्वानरस्य ह ।

शुचिः शुचिव्रतस्याथ शुचिस्मित्वाब्रवीच्छिशुः ॥

बाल उवाच ।

त्वया शुचे शुचिष्मत्यां योऽभिलाषः कृतो हृदि ।

अचिरेणैव कालेन स भविष्यत्यसंशयः ॥

तव पुत्रत्वमेष्यामि शुचिष्मत्यां महामते ।

ख्यातो गृहपतिर्नाम्ना शुचिः सर्वामरप्रियः ॥

अभिलाषाष्टकं पुण्यं स्तोत्रमेतत्त्वयेरितम् ।

अब्दं त्रिकालपठनात्कामदं शिवसन्निधौ ॥

एतत्स्तोत्रस्य पठनं पुत्रपौत्रधनप्रदम् ।

सर्वशान्तिकरं चापि सर्वापत्परिनाशनम् ॥

स्वर्गापवर्गसम्पत्तिकारकं नात्र संशयः ।

प्रातरुत्थाय सुस्नातो लिङ्गमभ्यर्च्य शाम्भवम् ॥

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वर्षं जपमिदं स्तोत्रमपुत्रः पुत्रवान्भवेत् ।

वैशाखे कार्तिके माघे विशेषनियमैर्युतः ॥

यः पठेत्स्नानसमये लभते सकलं फलम् ।

कार्तिकस्य तु मासस्य प्रसादादहमव्ययः ॥

तव पुत्रत्वमेष्यामि यस्त्वन्यस्तत्पठिष्यति ।

अभिलाषाष्टकमिदं न देयं यस्य कस्यचित् ॥

गोपनीयं प्रयत्नेन महावन्ध्याप्रसूतिकृत् ।

स्त्रिया वा पुरुषेणापि नियमाल्लिङ्गसन्निधौ ॥

अब्दं जपमिदं स्तोत्रं पुत्रदं नात्र संशयः ।

इत्युक्त्वान्तर्दधे बालः सोपि विप्रो गृहं गतः ॥

॥ इति श्रीस्कन्दपुराणे काशीखण्डे वीरेश्वरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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