अभिलाषाष्टक [ Shri Abhilasha Ashtakam & Abhilasha Ashtakam ]
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अभिलाषाष्टक !! abhilasha ashtakam in hindi
एकं ब्रह्मैवऽऽद्वितीयं समस्तं सत्यं सत्यं नेह नानास्ति किंचित् ।
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एको रुद्रो न द्वितीयाय तस्थे तस्मादेकं त्वां प्रपद्ये सदाहम् ॥ १॥
एकः कर्ता त्वं हि सर्वस्य शंभो नाना रूपेषु एकरूपोसि अरूपः ।
यद्वत् प्रत्यप्सु अर्कः एकोपि अनेकः तस्मात् नान्यं त्वां विनेशं प्रपद्ये ॥ २॥
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रज्जौ सर्पः शुक्तिकायां च रूप्यं नरः पूरः तन्मृगाख्ये मरीचौ ।
यद्वत् तद्वत् विष्वक् एषः प्रपञ्चः यस्मिन् ज्ञाते तं प्रपद्ये महेशं ॥ ३॥
तोये शैत्यं दाहकत्वं च वन्हौ तापो भानौ शीत भानौ प्रसादः ।
पुष्पे गण्धः दुग्ध मध्येऽपि सर्पिः यत्तत् शंभो त्वं ततः त्वां प्रपद्ये ॥ ४॥
शब्दं गृण्हासि अश्रवाः त्वं हि जिघ्रेः अग्राणः त्वं व्यंघ्रिः आयासि दूरात् ।
व्यक्षः पश्येः त्वं रसज्ञोऽपि अजिह्वः कः त्वां सम्यक् वेत्ति अतः त्वां प्रपद्ये ॥ ५॥
नो वेद त्वां ईश साक्षात् विवेद नो वा विष्णुः नो विधाताऽखिलस्य ।
नो योगीन्द्राः नेन्द्र मुख्याश्च देवाः भक्तो वेदत्वां अतस्त्वां प्रपद्ये ॥ ६॥
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नो ते गोत्रं नेश जन्मापि नाख्या नोवा रूपं नैव शीलं न तेजः ।
इत्थं भूतोपि ईश्वरः त्वं त्रिलोख्याः सर्वान् कामान् पूरयेः तत् भजेहम् ॥ ७॥
त्वत्तः सर्वं त्वहि सर्वं स्मरारे त्वं गौरीशः त्वं च नग्नः अतिशान्तः ।
त्वं वै वृद्धः त्वं युवा त्वं च बालः तत्वं यत्किं नासि अतः त्वां नतोस्मि ॥ ८॥
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