Sri Venkatesa Suprabhatam || श्री वेंकटेश सुप्रभातम् || Venkateswara Suprabhatam

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Sri Venkatesa Suprabhatam || श्री वेंकटेश सुप्रभातम् || Venkateswara Suprabhatam

श्री वेंकटेश सुप्रभातम् श्री वेंकटेश्वर बालाजी जो की भगवान श्री विष्णु जी के एक रूप है ! उनकी स्तुति गायन के लिए रोजाना सुबह पहले यह भजन गाया जाता हैं ! श्री वेंकटेश सुप्रभातम् कछीपुरम के रामानुजचार्य द्वारा कई कविताओं में लिखे गए भजन में से एक है पर मार्कंडेय पुराण के अनुसार ऋषि वेद व्यास जी के द्वारा लिखित अष्टदास पुराणों में से एक श्री वेंकटेश्वर सितारों के अंतिम चार पदों में इसके बारे में लिखा हुआ है यह बात ऋषि मार्कंडेय ने लिखी हैं ! श्री वेंकटेश सुप्रभातम् के नियमित रूप से भजन करने से भगवान श्री हरी को पसन्द किया जा सकता हैं ! श्री वेंकटेश सुप्रभातम् आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें :9667189678 Sri Venkatesa Suprabhatam By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.

Sri Venkatesa Suprabhatam || श्री वेंकटेश सुप्रभातम् || Venkateswara Suprabhatam

कौसल्या सुप्रजा राम पूर्वासन्ध्या प्रवर्तते ।

उत्तिष्ठ नरशार्दूल कर्त्तव्यं दैवमाह्निकम् ॥१॥

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज ।

उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यं मङ्गलं कुरु ॥२॥

मातस्समस्तजगतां मधुकैटभारेः वक्षोविहारिणि मनोहरदिव्यमूर्ते ।

श्रीस्वामिनि श्रितजनप्रियदानशीले श्रीवेङ्कटेशदयिते तव सुप्रभातम् ॥३॥

तव सुप्रभातमरविन्दलोचने भवतु प्रसन्नमुखचन्द्रमण्डले ।

विधिशङ्करेन्द्रवनिताभिरर्चिते वृशशैलनाथदयिते दयानिधे ॥४॥

अत्र्यादिसप्तऋषयस्समुपास्य सन्ध्यां आकाशसिन्धुकमलानि मनोहराणि ।

आदाय पादयुगमर्चयितुं प्रपन्नाः शेषाद्रिशेखरविभो तव सुप्रभातम् ॥५॥

पञ्चाननाब्जभवषण्मुखवासवाद्याः त्रैविक्रमादिचरितं विबुधाः स्तुवन्ति ।

भाषापतिः पठति वासरशुद्धिमारात् शेषाद्रिशेखरविभो तव सुप्रभातम् ॥६॥

ईषत्प्रफुल्लसरसीरुहनारिकेल पूगद्रुमादिसुमनोहरपालिकानाम् ।

आवाति मन्दमनिलस्सह दिव्यगन्धैः शेषाद्रिशेखरविभो तव सुप्रभातम् ॥७॥

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उन्मील्य नेत्रयुगमुत्तमपञ्जरस्थाः पात्रावशिष्टकदलीफलपायसानि ।

भुक्त्वा सलीलमथ केलिशुकाः पठन्ति शेषाद्रिशेखरविभो तव सुप्रभातम् ॥८॥

तन्त्रीप्रकर्षमधुरस्वनया विपञ्च्या गायत्यनन्तचरितं तव नारदोऽपि ।

भाषासमग्रमसकृत्करचाररम्यं शेषाद्रिशेखरविभो तव सुप्रभातम् ॥९॥

भृङ्गावली च मकरन्दरसानुविद्ध झङ्कारगीतनिनदैस्सह सेवनाय ।

निर्यात्युपान्तसरसीकमलोदरेभ्यः शेषाद्रिशेखरविभो तव सुप्रभातम् ॥१०॥

योषागणेन वरदध्नि विमथ्यमाने घोषालयेषु दधिमन्थनतीव्रघोषाः ।

रोषात्कलिं विदधते ककुभश्च कुम्भाः शेषाद्रिशेखरविभो तव सुप्रभातम् ॥११॥

पद्मेशमित्रशतपत्रगतालिवर्गाः हर्तुं श्रियं कुवलयस्य निजाङ्गलक्ष्म्या ।

भेरीनिनादमिव बिभ्रति तीव्रनादं शेषाद्रिशेखरविभो तव सुप्रभातम् ॥१२॥

श्रीमन्नभीष्टवरदाखिललोकबन्धो श्रीश्रीनिवास जगदेकदयैकसिन्धो ।

श्रीदेवतागृहभुजान्तरदिव्यमूर्ते श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥१३॥

श्रीस्वामिपुष्करिणिकाप्लवनिर्मलाङ्गाः श्रेयोऽर्थिनो हरविरिञ्चसनन्दनाद्याः ।

द्वारे वसन्ति वरवेत्रहतोत्तमाङ्गाः श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥१४॥

श्रीशेषशैल गरुडाचलवेङ्कटाद्रि नारायणाद्रि वृषभाद्रिवृषाद्रि मुख्याम् ।

आख्यां त्वदीयवसतेरनिशं वदन्ति श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥१५॥

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सेवापराश्शिवसुरेशकृशानुधर्म रक्षोऽम्बुनाथ पवमान धनादिनाथाः ।

बद्धाञ्जलि प्रविलसन्निजशीर्ष देशाः श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥१६॥

धाटीषु ते विहगराज मृगाधिराज नागाधिराज गजराज हयाधिराजाः ।

स्वस्वाधिकार महिमाधिकमर्थयन्ते श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥१७॥

सूर्येन्दु भौम बुध वाक्पति काव्यसौरि स्वर्भानु केतु दिविषत्परिषत्प्रधानाः ।

त्वद्दास दास चरमावधि दासदासाः श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥१८॥

त्वत्पादधूलि भरितस्फुरितोत्तमाङ्गाः स्वर्गापवर्ग निरपेक्ष निजान्तरङ्गाः ।

कल्पागमाकलनयाकुलतां लभन्ते श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥१९॥

त्वद्गोपुराग्रशिखराणि निरीक्षमाणाः स्वर्गापवर्गपदवीं परमां श्रयन्तः ।

मर्त्या मनुष्यभुवने मतिमाश्रयन्ते श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥२०॥

श्रीभूमिनायक दयादिगुणामृताब्धे देवाधिदेव जगदेकशरण्यमूर्ते ।

श्रीमन्ननन्तगरुडादिभिरर्चिताङ्घ्रे श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥२१॥

श्रीपद्मनाभ पुरुषोत्तम वासुदेव वैकुण्ठ माधव जनार्दन चक्रपाणे ।

श्रीवत्सचिह्न शरणागतपारिजात श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥२२॥

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कन्दर्पदर्पहर सुन्दर दिव्यमूर्ते कान्ताकुचाम्बुरुह कुटमल लोलदृष्टे ।

कल्याणनिर्मलगुणाकर दिव्यकीर्ते श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥२३॥

मीनाकृते कमठ कोल नृसिंह वर्णिन् स्वामिन् परश्वथतपोधन रामचन्द्र।

शेषांशराम यदुनन्दन कल्किरूप श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥२४॥

एला लवङ्ग घनसारसुगन्धितीर्थं दिव्यं वियत्सरिति हेमघटेषु पूर्णम् ।

धृत्वाऽद्य वैदिक शिखामणयः प्रहृष्टाः तिष्ठन्ति वेङ्कटपते तव सुप्रभातम् ॥२५॥

भास्वानुदेति विकचानि सरोरुहाणि सम्पूरयन्ति निनदैः ककुभो विहङ्गाः ।

श्रीवैष्णवास्सततमर्थितमङ्गलास्ते धामाश्रयन्ति तव वेङ्कट सुप्रभातम् ॥२६॥

ब्रह्मादयस्सुरवरास्समहर्षयस्ते सन्तस्सनन्दनमुखास्तवथ योगिवर्याः ।

धामान्तिके तव हि मङ्गलवस्तुहस्ताः श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥२७॥

लक्ष्मीनिवास निरवद्यगुणैकसिन्धो संसार सागर समुत्तरणैकसेतो ।

वेदान्तवेद्यनिजवैभव भक्तभोग्य श्रीवेङ्कटाचलपते तव सुप्रभातम् ॥२८॥

इत्थं वृषाचलपतेरिह सुप्रभातं ये मानवाः प्रतिदिनं पठितुं प्रवृत्ताः ।

तेषां प्रभातसमये स्मृतिरङ्गभाजां प्रज्ञां परार्थसुलभां परमां प्रसूते ॥२९॥

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