कामाख्या कवच || Kamakhya Kavach || Kamakhya Kavacham

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कामाख्या कवच || Kamakhya Kavach || Kamakhya Kavacham

कामाख्या कवच माँ कामाख्या देवी को समर्पित हैं ! कामाख्या कवच के भगवान शिव जी रचियता है ! कामाख्या कवच को नियमित रूप से पाठ करने से जातक के ऊपर किसी तरह का तांत्रिक प्रभाव, बुरी नज़र का प्रभाव, काला जादू का प्रभाव नही होता हैं ! कामाख्या कवच आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें :9667189678 Kamakhya Kavach By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.

कामाख्या कवच || Kamakhya Kavach || Kamakhya Kavacham

ॐ कामाख्याकवचस्य मुनिर्वृहस्पति स्मृतः ।

देवी कामेश्वरी तस्य अनुष्टुपछन्द इष्यतः ॥1॥

विनियोगः सर्व्वसिद्धौ नञ्च श्रृण्वन्तु देवताः ।

शिरः कामेश्वरी देवी कामाख्या चक्षुषी मम ॥2॥

शारदा कर्णयुगलं त्रिपुरा वदनं तथा ।

कण्ठे पातु महामाया हदि कामेश्वरी पुनः ॥3॥

कामाख्या जठरे पातु शारदा पातु नाभितः ।

त्रिपुरा पार्श्वयोः पातु महामाया तु मेहने ॥4॥

गुदे कामेश्वरी पातु कामाख्योरुद्वये तु माम् ।

जानुनोः शारदा पातु त्रिपुरा पातु जङ्घयोः ॥5॥

महामाया पादयुगे नित्यं रक्षतु कामदा ।

केशे कोटेश्वरी पातु नासायां पातु दीर्घिका ॥6॥

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दन्तसङ्घाते मातङ्यवतु चाङ्गयोः ।

बाह्वोर्म्मां ललिता पातु पाण्योस्तु बनवासिनी ॥7॥

विनध्यवासिन्यङ्ग लीषु श्रीकामा नखकोटिषु ।

रोमकूपेषु सर्व्वेषु गुप्तकामा सदावतु ॥8॥

पादाङ्गुलि – पार्ष्णिभागे पातु मां भुवनेश्वरी ।

जिह्वायां पातु मां सेतुः कः कण्ठाभ्यन्तरेऽवतु ॥9॥

पातु नश्चान्तरे वक्षः ईः पातु जठारान्तरे ।

सामिन्दुः पातु मां वस्तौ विन्दुर्व्विद्वन्तरेऽवतु ॥10॥

ककारस्त्वचि मां पातु रकारोऽस्थिषु सर्व्वदा ।

लकाराः सर्व्वनाडिषु ईकारः सर्व्वसन्धिषु ॥11॥

चन्द्रः स्नायुषु मां पातु विन्दुर्मज्जासु सन्ततम् ।

पूर्व्वस्यां दिशि चाग्नेष्यां दक्षिणे नैऋते तथा ॥12॥

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वारुणे चैव वायव्यां कौवेरे हरमन्दिरे ।

अकाराद्यास्तु वैष्णवा अष्टौ वर्णास्तु मन्त्रगाः ॥13॥

पान्तु तिष्ठन्तु सततं समुदभवविवृद्धये ।

ऊर्द्घाधः पातु सततं मान्तु सेतुद्वयं सदा ॥14॥

नवाक्षराणि मन्त्रेषु शारदा मन्त्रगोचरे ।

नवस्वरन्तु मां नित्यं नासादिषु समन्ततः ॥15॥

वातपित्तकफेभ्यस्तु त्रिपुरायास्तु त्र्यक्षरम् ।

नित्यं रक्षतु भूतेभ्यः पिशाचेभ्यस्तथैव च ॥16॥

तत् सेतु सततं पाता क्रव्यादभ्यो मान्निवारकौ ।

नमः कामेश्वरी देवीं महामायां जगन्मयीम् ॥17॥

या भूत्वा प्रकृतिर्नित्यं तनोति जगदायतम् ।

कामाख्यामक्षमालाभयवरदकरां सिद्धसूत्रैकहस्तां ॥18॥

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श्वेतप्रेतोपरिस्थां मणिकनकयुतां कुङ्कमापीतवर्णाम् ।

ज्ञानध्यानप्रतिष्ठामतिशयविनयां ब्रह्मशक्रादिवन्द्या ॥19॥

मग्नौ विन्द्वन्तमन्त्रप्रियतमविषयां नौमि विद्धयैरतिस्थाम् ।

मध्ये मध्यस्य भागे सततविनमिता भावहावली या,

लीला लोकस्य कोष्ठे सकलगुणयुता व्यक्त रुपैकनम्रा ।

विद्या विद्यैकशान्ता शमनशमकरी क्षेमकत्रीं वरास्या,

नित्यं पायात् पवित्रप्रणववरकरा कामपूर्वीश्वरी नः ॥20॥

इति हरकवचं तनुस्थितं शमयति वै शमनं तथा यदि ।

इह गृहाण यतस्व विमोक्षणे सहित एष विधिः सह चामरैः ॥21॥

इतीदं कवचं यस्तु कामाख्यायाः पठेद् बुधः ।

सुकृत् तं तु महादेवी तनुव्रजति नित्यदा ॥22॥

नाधिव्याधिभयं तस्य न क्रव्यादमो भयं तथा ।

नाग्नितो नापि तोयेभ्यो न रिपुभ्यो न राजतः ॥23॥

दीर्घायुर्व्वहुभोगी च पुत्रपौत्रसमन्वितः ।

आवर्त्तयन् शतं देवी मन्दिरे मोदते परे ॥24॥

यथा यथा भवेदबद्धः संग्रामेऽन्यत्र वा बुधः ।

ततक्षणादेव मुक्तः स्यात् स्मरणात् कवचस्य तु ॥25॥ – कालिका पुराण

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