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आनंदतीर्थ कृतं गंगा अष्टकम || Anandatirtha Kritam Ganga Ashtakam
इस गंगाष्टकम् के रचियता महाकवि कालिदास जी ने की हैं ! हमारे हिन्दू धर्म में गंगा नदी को माँ का दर्जा दिया गया हैं ! ऋग्वेद वेद में गंगा नदी का वर्णित किया हुआ हैं ! गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं ! Anandatirtha Kritam Ganga Ashtakam में गंगा नदी के बारे में बताया गया है ! जो भी व्यक्ति गंगाष्टकम् का नियमित रूप से पाठ करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते है और गंगा माँ की विशेष कृपा बनी रहती हैं ! उसकी बुद्दि भी निर्मल हो जाती हैं और जीवन समाप्त होने के बाद मोक्ष को प्राप्त होता हैं ! Anandatirtha Kritam Ganga Ashtakam आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें :9667189678 Anandatirtha Kritam Ganga AshtakamBy Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.
आनंदतीर्थ कृतं गंगा अष्टकम || Anandatirtha Kritam Ganga Ashtakam
यदवधि तवतीरं पातकी नैति गंगे तदवधि मलजालैर्नैवमुक्तः कलौ स्यात्।
तव जलकणिकाऽलं पापिनां पापशुद्ध्यै पतितपरमदीनांस्त्वंहि पासि प्रपन्नान् ॥१॥
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तव शिवजललेशं वायुनीतं समेत्य सपदि निरयजालं शून्यतामेतिगङ्गे।
शमलगिरिसमूहाः प्रस्फुटन्ति प्रचण्डा-स्त्वयि सखि विशतां नः पापशंका कुतः स्यात् ॥२॥
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तव शिवजलजालं निःसृतं यर्हि गङ्गे सकलभुवनजालं पूतपूतं तदाभूत्।
यमभटकलिवार्ता देवि लुप्ता यमोपि व्यतिकृत वरदेहाः पूर्णकामाः सकामाः॥३॥
मधुमधुवनपूगै रत्नपूगैर्निपूगै-र्मधुमधुवनपूगैर्देवपूगैः सपूगैः
पुरहरपरमांगे भासि मायेव गंगे शमयसि विषतापं देवदेवस्य वन्द्ये ॥४॥
चलितशशिकलाभैरुत्तरंगैस्तरंगै-रमितनदनदीनामंगसंगैरसंगैः।
विहरसि जगदण्डे खण्डयन्ती गिरीन्द्रान् रमयसि निजकान्तं सागरं कान्तकान्ते ॥५॥
तव वरमहिमानं चित्तवाचाममानं हरिहरविधिशक्रा नापि गंगे विदन्ति।
श्रुतिकुलमभिधत्ते शङ्कितं ते गुणान्तं गुणगणसुविलापैर्नेति नेतीति सत्यम् ॥६॥
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तवनुतिनतिनामान्यप्यघं पावयन्ति ददति परमशान्तिं दिव्यभोगान् जनानां।
इति पतितशरण्ये त्वां प्रपन्नोऽस्मि मातः ललिततरतरंगे चांग गंगे प्रसीद ॥७॥
शुभतरकृतयोगाद्विश्वनाथप्रसादात् भवहरवरविद्यां प्राप्य काश्यां हि गंगे।
भगवति तव तीरे नीरसारं निपीय मुदितहृदयकञ्जे नन्दसूनुं भजेऽहम् ॥८॥
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