श्री श्यामला दण्डकम् || Sri Shyamala Dandakam

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श्री श्यामला दण्डकम् || Sri Shyamala Dandakam

श्री श्यामला दण्डकम् कलिदास जी द्वारा रचियत हैं ! श्री श्यामला दण्डकम् माँ श्री सरस्वती देवी जी को समर्पित हैं ! श्री श्यामला दण्डकम्आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Sri Shyamala Dandakam By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री श्यामला दण्डकम् || Sri Shyamala Dandakam

माणिक्यवीणामुपलालयन्तीं मदालासां मञ्जुलवाग्विलासाम् ।

माहेन्द्रनीलद्युतिकोमलाङ्गीं मातंगकन्यां सततं स्मरामि ॥१॥

चतुर्भुजे चन्द्रकलावतंसे कुचोन्नते कुङ्कुमरागशोणे ।

पुण्ड्रेक्षुपाशाङ्कुशपुष्पबाण-हस्ते नमस्ते जगदेकमातः ॥२॥

माता मरकतश्यामा मातङ्गी मदशालिनी ।

कटाक्षयतु कल्याणी कदंबवनवासिनी ॥३॥

जय मातंगतनये जय नीलोत्पलद्युते ।

जय संगीतरसिके जय लीलाशुकप्रिये ॥४॥

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जय जननि सुधासमुद्रान्तरुद्यन्मणिद्वीप-संरूढ-बिल्वाटवीमध्य-

कल्पद्रुमाकल्प-कादम्बकान्तार-वासप्रिये, कृत्तिवासप्रिये, सर्वलोकप्रिये !

सादरारब्ध-संगीत-संभावना-संभ्रमालोल-नीपस्रगाबद्ध-चूलीसनाथत्रिके, सानुमत्पुत्रिके !

शेखरीभूत-शीतांशुरेखा-मयूखावलीबद्ध-सुस्निग्ध-नीलालकश्रेणि-शृंगारिते, लोकसंभाविते !

कामलीला-धनुस्सन्निभ-भ्रूलतापुष्प-सन्दोह-सन्देहकृल्लोचने,

वाक्सुधासेचने, चारुगोरचनापङ्क-केलीललामाभिरामे, सुरामे! रमे!

प्रोल्लसद्बालिका-मौक्तिकश्रेणिका-चन्द्रिकामण्डलोद्भासि-लावण्य-गण्डस्थलन्यस्त-कस्तूरिकापत्ररेखा-समुद्भूत-सौरभ्य-संभ्रान्त-भृङ्गांगनागीत-सान्द्रीभवन्मन्द्रतन्त्रीस्वरे, सुस्वरे! भास्वरे!

वल्लकीवादन-प्रक्रियालोल-तालीदलाबद्ध-ताटङ्कभूषाविशेषान्विते, सिद्धसम्मानिते !

दिव्यहाला-मदोद्वेल-हेलालसच्चक्षुरान्दोलनश्री-समाक्षिप्त-कर्णैकनीलोत्पले !

श्यामले, पूरिताशेषलोकाभिवाञ्छाफले ! निर्मले श्रीफले!

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स्वेदबिन्दूल्लसत्-फाललावण्य-निष्यन्द-सन्दोह-सन्देहकृन्नासिकामौक्तिके,

सर्वमन्त्रात्मिके, कालिके! सर्वसिद्ध्यात्मिके !

मुग्धमन्दस्मितोदार-वक्त्रस्फुरत्-पूगतांबूलकर्पुरखण्डोत्करे !

ज्ञानमुद्राकरे ! श्रीकरे! पद्मभास्वत्करे !

कुन्द्पुष्पद्युति-स्निग्धदन्तावली-निर्मलालोलकल्लोल-सम्मेलन-स्मेर-शोणाधरे !

चारुवीणाधरे ! पक्वबिंबाधरे !

सुललित-नवयौवनारंभ-चन्द्रोदयोद्वेल-लावण्य-दुग्धार्णवाविर्भवत्-कंबुबिंबोकभृत्-कन्धरे ! सत्कलामन्दिरे ! मन्थरे!

दिव्यरत्नप्रभा-बंधुरछन्न-हारादिभूषा-समुद्योतमानानवद्यांगशोभे, शुभे !

रत्नकेयूर-रश्मिच्छटा-पल्लव-प्रोल्लसत्-दोर्लताराजिते ! योगिभिः पूजिते!

विश्वदिङ्मण्डलव्यापि-माणिक्य-तेजस्फुरत्-कङ्कणालंकृते- विभ्रमालंकृते- साधुभिस्सत्कृते!

वासरारंभवेला-समुज्जृंभमाणारविन्द-प्रतिद्वन्द्वि-पाणिद्वये ! संततोद्यद्दये! अद्वये !

दिव्य्ररत्नोर्मिका-दीधितिस्तोम-संध्यायमानाङ्गुलीपल्लवोद्यन्नखेन्दु- प्रभामण्डले !

सन्नताखण्डले ! चित्प्रभामण्डले ! प्रोल्लसद्कुण्डले!

तारकाराजि-नीकाश-हारावलि-स्मेर-चारुस्तनाभोग-भारानमन्मध्यवल्ली-वलिच्छेद-वीचीसमुल्लास-सन्दर्शिताकार-सौन्दर्य-रत्नाकरे, किङ्कर श्रीकरे!

हेमकुंभोपमोत्तुङ्गवक्षोजभारावनम्रे ! त्रिलोकावनम्रे!

लसद्वृत्त-गम्भीर-नाभीसरस्तीर-शैवाल-शङ्काकर- श्यामरोमावली-भूषणे ! मञ्जुसंभाषणे!

चारुशिञ्जत्-कटीसूत्र-निर्भर्त्सितानंग-लीलाधनु-श्शिञ्जिनीडंबरे ! दिव्यरत्नांबरे !

पद्मरागोल्लसन्मेखला-भास्वर-श्रोणिशोभाजित-स्वर्णभूभृत्तले! चन्द्रिकाशीतले !

विकसित-नवकिंशुकाताम्र-दिव्यांशुकच्छन्न-चारूरुशोभा-पराभूत- सिन्दूर-शोणायमानेन्द्रमातंग-हस्तार्गले ! वैभवानर्गले ! श्यामले !

कोमलस्निग्ध-नीलोत्पलोत्पादितानंगतूणीर-शङ्काकरोदारजंघालते चारुलीलागते !

नम्रदिक्पाल-सीमन्तिनी-कुन्तल-स्निग्ध-नीलप्रभापुञ्ज-सञ्जात-दूर्वाङ्कुराशंकि-सारंग-संयोग-रिंखन्नखेन्दूज्ज्वले. प्रोज्ज्वले! निर्मले !

प्रह्व-देवेश-लक्ष्मीश-भूतेश-लोकेश-वाणीश-कीनाश-दैत्येश-यक्षेश-वाय्वग्नि-कोटीरमाणिक्य-संघृष्ट-बालातपोद्दाम-लाक्षारसारुण्य-तारुण्य-लक्ष्मीगृहीतांघ्रिपद्मे ! सुपद्मे उमे!

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सुरुचिर-नवरत्न-पीठस्थिते, रत्नपद्मासने, रत्नसिंहासने, शंखपद्मद्वयोपाश्रिते, विश्रुते, तत्र विघ्नेशदुर्गावटुक्षेत्र्पालैर्युते !

मत्तमातंगकन्यासमूहान्विते, भैरवैरष्टभिर्वेष्टिते, मञ्जुलामेनकाद्यंगनामानिते, देवि वामादिभि: शक्तिभिः सेविते ! धात्रिलक्ष्म्यादि-शक्त्यष्टकैर्सेविते ! मातृकामण्डलैर्मण्डिते !

यक्षगन्धर्व-सिद्धांगनामण्डलैरर्चिते ! भैरवीसंवृते ! पंचबाणात्मिके ! पंचबाणेन रत्या च संभाविते ! प्रीतिभाजा वसन्तेन चानन्दिते !

भक्तिभाजां परं श्रेयसे कल्पसे । योगिनां मानसे द्योतसे । छन्दसामोजसा भ्राजसे।

गीतविद्याविनोदातितृष्णेन कृष्णेनसंपूज्यसे भक्तिमच्चेतसा वेधसा स्तूयसे । विश्वहृद्येन वाद्येन विद्याधरैर्गीयसे ।

श्रवणहरण-दक्षिणक्वाणया वीणया किन्नरैर्गीयसे, यक्षगन्धर्वसिद्धांगनामण्डलैरर्च्यसे, सर्वसौभाग्यवाञ्छावतीभिर्वधूभिस्सुराणां समाराध्यसे

सर्वविद्याविशेषात्मकं चाटुगाथासमुच्चारणं कण्ठमूलोल्लसद्वर्णराजित्रयं कोमलश्यामलोदारपक्षद्वयं तुण्डशोभातिदूरीभवत्किंशुकं तं शुकं लालयन्ती परिक्रीडसे ।

पाणिपद्मद्वयेनाक्षमालामपिस्फाटिकीं ज्ञानसारात्मकं पुस्तकं चाङ्कुशं पाशमाबिभ्रती येन सञ्चिन्त्यसे तस्य वक्त्रान्तरात् गद्यपद्यात्मिका भारती निस्सरेत् ।

येन वा यावकाभाकृतिर्भाव्यसे, तस्य वश्या भवन्ति स्त्रियः पूरुषाः । येन वा शातकुंभद्युतिर्भाव्यसे सोऽपि लक्ष्मीसहस्रैः परिक्रीडते ।

किं न सिद्ध्येद्वपुः श्यामलं कोमलं चन्द्रचूडान्वितं तावकं ध्यायतः तस्य लीलासरोवारिधिः तस्य केलीवनं नन्दनं, तस्य भद्रासनं भूतलं, तस्य वाग्देवता किङ्करी, तस्य चाज्ञाकरी श्री स्वयम्स

र्वतीर्थात्मिके ! सर्वतन्त्रात्मिके! सर्वमन्त्रात्मिके, सर्वचक्रात्मिके, सर्वशक्त्यात्मिके ! सर्वपीठात्मिके! सर्वतत्त्वात्मिके! सर्वविद्यात्मिके! सर्वयोगात्मिके! सर्वनादात्मिके! सर्ववेदात्मिके ! सर्वशब्दात्मिके ! सर्वविश्वात्मिके ! सर्ववर्गात्मिके ! सर्वदीक्षात्मिके! सर्वगे ! सर्वरूपे! जगन्मातृके! पाहि मां, पाहि मां, देवि तुभ्यं नमो, देवि तुभ्यं नमो, देवि तुभ्यं नमः !

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