श्री दधि वामन स्तोत्रम् || Sri Dadhi Vamana Stotram || Dadhivamana Stotram

श्री दधि वामन स्तोत्रम् || Sri Dadhi Vamana Stotram || Dadhivamana Stotram

भगवत पुराण के अष्टम स्कंध में बताया गया है। इसके अनुसार हिंदू धर्म का ग्रंथ श्री भगवत महापुराण के अष्टम् स्कंध के 17 वें अध्याय में वामन अवतार का वर्णन किया गया हैं ! श्री दधि वामन स्तोत्रम् भगवान श्री विष्णु जी को समर्पित हैं ! श्री दधि वामन स्तोत्रम् भगवान श्री विष्णु जी के वामन अवतार का स्तोत्र हैं ! श्री दधि वामन स्तोत्रम्के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Sri Dadhi Vamana Stotram By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री दधि वामन स्तोत्रम् || Sri Dadhi Vamana Stotram || Dadhivamana Stotram

हेमाद्रिशिखराकारं शुद्धस्फटिकसन्निभम् ।

पूर्णचन्द्रनिभं देवं द्विभुजं वामनं स्मरेत् ॥१॥

पद्मासनस्थं देवेशं चन्द्रमण्डलमध्यगम्।

ज्वलत्कालानलप्रख्यं तडित्कॊटिसमप्रभम् ॥२॥

सुर्यकॊटिप्रतीकाशं चन्द्रकोटिसुशीतलम्।

चन्द्रमण्डलमध्यस्थं विष्णुमव्ययमच्युतम् ॥३॥

श्रीवत्सकौस्तुभोरस्कं दिव्यरत्नविभूषितम्।

पीतांबरमुदाराङ्गं वनमालाविभूषितम् ॥४॥

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सुन्दरं पुण्डरीकाक्षं किरीटेन विराजितम्।

षोडशस्त्रीयुतं संयगप्सरोगणसेवितम्॥५॥

ऋग्यजुस्सामाथर्वाद्यैः गीयमानं जनार्दनम्।

चतुर्मुखाद्यैः देवेशैः स्तोत्राराधनतत्परैः ॥६॥

सनकाद्यैः मुनिगणैः स्तूयमानमहर्निशम्।

त्रियंबको महादेवो नृत्यते यस्य सन्निधौ॥७॥

दधिमिश्रान्नकवलं रुक्मपात्रं च दक्षिणे।

करे तु चिन्तयेद्वामे पीयूषममलं सुधीः ॥८॥

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साधकानाम् प्रयच्छन्तं अन्नपानमनुत्तमम्।

ब्राह्मे मुहूर्तेचोत्थाय ध्यायेद्देवमधोक्षजम् ॥९॥

अतिसुविमलगात्रं रुक्मपात्रस्थमन्नम् सुललितदधिभाण्डं पाणिना दक्षिणेन ।

कलशममृतपूर्णं वामहस्ते दधानं तरति सकलदुःखान् वामनं भावयेद्यः ॥१०॥

क्षीरमन्नमन्नदाता लभेदन्नाद एव च।

पुरस्तादन्नमाप्नोति पुनरावर्तिवर्जितम् ॥११॥

आयुरारोग्यमैश्वर्यं लभते चान्नसंपदः।

इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु प्रातःकाले द्विजोत्तमः ॥१२॥

अक्लेशादन्नसिध्यर्थं ज्ञानसिध्यर्थमेव च।

अभ्रश्यामः शुद्धयज्ञोपवीती सत्कौपीनः पीतकृष्णाजिनश्रीः

छ्त्री दण्डी पुण्डरीकायताक्षः पायाद्देवो वामनो ब्रह्मचारी ॥१३॥

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अजिनदण्डकमण्डलुमेखलारुचिरपावनवामनमूर्तये।

मितजगत्त्रितयाय जितारये निगमवाक्पटवे वटवे नमः॥१४॥

श्रीभूमिसहितं दिव्यं मुक्तामणिविभूषितम्।

नमामि वामनं विष्णुं भुक्तिमुक्तिफलप्रदम् ॥१५॥

वामनो बुद्धिदाता च द्रव्यस्थो वामनः स्मृतः।

वामनस्तारकोभाभ्यां वामनाय नमो नमः ॥१६॥

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