शिव कौन हैं || Shiv Kon Hai || Bhagwan Shiv Ka Swarup

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शिव कौन हैं || Shiv Kon Hai || Bhagwan Shiv Ka Swarup

बहुत सारे ऐसे व्यक्ति है इस संसार में जिन्हें शिव और शिवलिंग के बारे में सही से जानकारी नही होने के कारण यह समाज में शिव और शिवलिंग के बारे में भ्रम में फंस कर अपने सनातन धर्म के बारे में उनके मन में गलत धारणा पैदा हो जाती है ! जिससे आप भी पढ़कर शिव और शिवलिंग के बारे में अधिक से अधिक और सही जानकारी पा सकोगें !Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi द्वारा बताये जा रहे शिव कौन हैं || Shiv Kon Hai || Bhagwan Shiv Ka Swarup को पढ़कर आप भी अपने हिन्दू धर्म यानि की सनातन धर्म में रूचि होने लगेगी और समाज में जो लोग अपने धर्म के बारे में गलत प्रचार करते है उनके गाल पर आप यह जानकारी देकर चाटा जड़ सकोगे!! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! जय श्री मेरे पूज्यनीय माता – पिता जी !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें Mobile & Whats app Number : 9667189678 Bhagwan Shiv Ka Swarup By Pandit Lalit Trivedi.

शिव कौन हैं || Shiv Kon Hai || Bhagwan Shiv Ka Swarup

जानें कौन हैं शिव…??? || Shiv Kon Hai

शिव संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, “कल्याणकारी या शुभकारी”। यजुर्वेद ग्रथं में शिव को शांतिदाता बताया गया है। ‘शि’ का अर्थ है, पापों का नाश करने वाला, जबकि ‘व’ का अर्थ देने वाला यानी दाता ।

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जानें क्या है शिवलिंग…??? || Kya Hai Shivling

भगवान शिव की दो काया है। एक वह, जो स्थूल रूप से व्यक्त किया जाए, दूसरी वह, जो सूक्ष्म रूपी अव्यक्त लिंग के रूप में जानी जाती है। शिव की सबसे ज्यादा पूजा लिंग रूपी पत्थर के रूप में ही की जाती है। लिंग शब्द को लेकर बहुत भ्रम होता है। संस्कृत में लिंग का अर्थ है “चिह्न या सृजन”। इसी अर्थ में यह शिवलिंग के लिए इस्तेमाल होता है। शिवलिंग का अर्थ है : शिव यानी परमपुरुष का प्रकृति के साथ समन्वित-चिह्न ।

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कौन हैं शिव, शंकर, महादेव…??? || Kon Hai Mahadev

भगवान शिव का नाम “शंकर” के साथ जोड़ा जाता है । लोग कहते हैं – शिव शंकर भोलेनाथ । इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है । कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालना और विनाश के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश ( महेश भी शंकर का ही नाम है ) नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की है। इस तरह शिव ब्रह्मांड के रचयिता हुए और शंकर उनकी एक रचना । भगवान शिव को इसीलिए महादेव भी कहा जाता है । इसके अलावा शिव को 108 दूसरे नामों से भी जाना और पूजा जाता है ।

कौन हैं अर्द्धनारीश्वर…??? || Kon Hai Ardhnarishwar

भगवान शिव को “अर्द्धनारीश्वर” भी कहा गया है, इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव आधे पुरुष ही हैं या उनमें संपूर्णता नहीं । दरअसल, यह शिव ही हैं, जो आधे होते हुए भी पूरे हैं। इस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष। प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है। अर्धनारीश्वर शिव इसी पारस्परिकता के प्रतीक हैं । आधुनिक समय में स्त्री-पुरुष की बराबरी पर जो इतना जोर है, उसे शिव के इस स्वरूप में बखूबी देखा-समझा जा सकता है । यह बताता है कि शिव जब शक्ति युक्त होता है तभी समर्थ होता है। शक्ति के अभाव में शिव ‘शिव’ न होकर ‘शव’ रह जाता है ।

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कौन हैं नीलकंठ …??? || Kon Hai Neelkanth

अमृत पाने की इच्छा से जब देव-दानव बड़े जोश और वेग से मंथन कर रहे थे, तभी समुद से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। उस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगीं। समस्त प्राणियों में हाहाकार मच गया। देवताओं और दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व और यक्ष आदि उस विष की गरमी से जलने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर, भगवान शिव विषपान के लिए तैयार हो गए। उन्होंने भयंकर विष को हथेलियों में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। भगवान विष्णु अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं। उन्होंने उस विष को शिवजी के कंठ (गले) में ही रोक कर उसका प्रभाव खत्म कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए ।

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कौन हैं भोले बाबा…..???? || Kon Hai Bhole Baba

शिव पुराण ग्रन्थ में एक शिकारी की कथा है । एकबार उसे जंगल में देर हो गई। तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया। जगे रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची। वह सारी रात एक-एक पत्ता तोड़कर नीचे फेंकता रहा । कथानुसार, बेल के पत्ते शिव को बहुत प्रिय हैं। बेल वृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था । शिवलिंग पर प्रिय पत्तों का अर्पण होते देख शिव प्रसन्न हो उठे, जबकि शिकारी को अपने शुभ काम का अहसास न था। उन्होंने शिकारी को दर्शन देकर उसकी मनोकामना पूरी होने का वरदान दिया। कथा से यह साफ है कि शिव कितनी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। शिव महिमा की ऐसी कथाओं और बखानों से पुराण भरे पड़े हैं ।

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भगवान शिव का स्वरूप || Bhagwan Shiv Ka Swarup

भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना विचित्र है, उतना ही आकर्षक भी । शिव जो धारण करते हैं, उनके भी बड़े व्यापक अर्थ हैं :

  • जटाएं : शिव की जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक हैं।
  • चंद्र : चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन चांद की तरह भोला, निर्मल, उज्ज्वल और जाग्रत है।
  • त्रिनेत्र : शिव की तीन आंखें हैं। इसीलिए इन्हें त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव की ये आंखें सत्व, रज, तम (तीन गुणों), भूत, वर्तमान, भविष्य (तीन कालों), स्वर्ग, मृत्यु पाताल (तीनों लोकों) का प्रतीक हैं।
  • सर्पहार : सर्प जैसा हिंसक जीव शिव के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक जीव है, जिसे शिव ने अपने वश में कर रखा है।
  • त्रिशूल : शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है। त्रिशूल भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।
  • डमरू : शिव के एक हाथ में डमरू है, जिसे वह तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्मा रूप है।
  • मुंडमाला : शिव के गले में मुंडमाला है, जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में किया हुआ है।
  • छाल : शिव ने शरीर पर व्याघ्र चर्म यानी बाघ की खाल पहनी हुई है। व्याघ्र हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा और अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है।
  • भस्म : शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से किया जाता है। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है।
  • वृषभ : शिव का वाहन वृषभ यानी बैल है। वह हमेशा शिव के साथ रहता है। वृषभ धर्म का प्रतीक है। महादेव इस चार पैर वाले जानवर की सवारी करते हैं, जो बताता है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनकी कृपा से ही मिलते हैं। इस तरह शिव-स्वरूप हमें बताता है कि उनका रूप विराट और अनंत है, महिमा अपरंपार है। उनमें ही सारी सृष्टि समाई हुई है।

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  • महामृत्युंजय मंत्र : शिव के साधक को न तो मृत्यु का भय रहता है, न रोग का, न शोक का। शिव तत्व उनके मन को भक्ति और शक्ति का सामर्थ्य देता है। शिव तत्व का ध्यान महामृत्युंजय मंत्र के जरिए किया जाता है। इस मंत्र के जाप से भगवान शिव की कृपा मिलती है। शास्त्रों में इस मंत्र को कई कष्टों का निवारक बताया गया है । यह मंत्र यों हैं : “ओम् त्र्यम्बकं यजामहे, सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।” (भावार्थ : हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, ताकि मोक्ष की प्राप्ति हो जाए, उसी उसी तरह से जैसे एक खर बूजा अपनी बेल में पक जाने के बाद उस बेल रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाता है।)

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