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माँ गंगा चालीसा || Maa Ganga Chalisa || Shri Ganga Chalisa
हमारे हिन्दू धर्म में गंगा नदी को माँ का दर्जा दिया गया हैं ! ऋग्वेद वेद में गंगा नदी का वर्णित किया हुआ हैं ! गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं ! श्री गंगा चालीसा में गंगा नदी के बारे में बताया गया है ! जो भी व्यक्ति श्री गंगा चालीसा का नियमित रूप से पाठ करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते है और गंगा माँ की विशेष कृपा बनी रहती हैं ! उसकी बुद्दि भी निर्मल हो जाती हैं और जीवन समाप्त होने के बाद मोक्ष को प्राप्त होता हैं ! श्री गंगा चालीसाआदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें :9667189678 Maa Ganga Chalisa By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.
माँ गंगा चालीसा || Maa Ganga Chalisa || Shri Ganga Chalisa
॥ दोहा ॥
जै जै जै जग पावनी, जयति देवसरि गंग ।
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जै शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग ॥
॥ चौपाई ॥
जै जै जननि हरण अघ खानी ।
आनन्द करनी गंगा महारानी ||1||
जै भागीरथि सुरसरि माता ।
कलि मल मूल दलनि विख्यता ||2||
जै जै जै हनु सुता अघ हननी ।
भीष्म की माता जग जननी ||3||
धवल कमल दल सम तनु साजै ।
लखि शत शरद चन्द्र छवि लाजै ||4||
वाहन मकर विमल शुचि सोहैं ।
अमिय कलश कर लखि मन मोहैं ||5||
जड़ित रत्न कंचन आभूषण ।
हिय मणि हार हरणितम दूषण ||6||
जग पावनि त्रय ताप नसावनि ।
तरल तरंग तंग मन भावनि ||7||
जो गणपति अति पूज्य प्रधाना ।
तिहुँ ते प्रथम गंग अस्नाना ||8||
ब्रह्मा कमण्डल वासिनि देवी ।
श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी ||9||
साठि सहस्र सगर सुत तार्यो ।
गंगा सागर तीर्थ धार्यो ||10||
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अगम तरंग उठयो मन भावन ।
लखि तीर्थ हरिद्वार सुहावन ||11||
तीर्थ राज प्रयाग अक्षयवट ।
धतयौ मातु पुनि काशी करवट ||12||
धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढ़ी ।
तारणि अमित पितृ पद पीढ़ी ||13||
भगीरथ तप कियो अपारा |
दियो ब्रह्म तब सुरसरि धारा ||14||
जब जग जननी चल्यो हहराई ।
शम्भू जटा महँ रह्यो समाई ||15||
बर्ष पर्यन्त गंग महारानी ।
रही शम्भू के जटा भुलानी ||16||
मुनि भगीरथ शम्भूहिं ध्यायो ।
तब इक बून्द जटा से पायो ||17||
ताते मातु भई त्रय धारा ।
मृत्यु लोक नभ अरु पातारा ||18||
गईं पाताल प्रभावति नामा ।
मन्दाकिनी गई गगन ललामा ||19||
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनि ।
कलिमल हरणि अगम जग पावनि ||20||
धनि मैया तव महिमा भारी ।
धर्म धुरि कलि कलुष कुठारी ||21||
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मातु प्रभावति धनि मन्दाकिनी ।
धनि धनि देव सरित भयनासिनी ||22||
पान करत निर्मल गंगा जल ।
पावत मन इछित अनन्त फल ||23||
पूर्व जन्म पुण्य जब जागत ।
तबहिं ध्यान गंगा महँ लागत ||24||
जब पगु सुरसरि हेत उठावहि ।
तै जगि अश्वमेध फल पावहि ||25||
महा पतित जिन कहु न तारे ।
तिन तारे इक नाम तिहारे ||26||
शत योजनहू से जो ध्यावै ।
निश्चय विष्णु लोक पद पावै ||27||
नाम भजत अगणित अघ नाशै ।
विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै ||28||
जिमि धन मूल धर्म अरु दाना ।
धर्म मूल गंगा जल पाना ||29||
तव गुणगान करत दुख भाजत ।
गृह गृह सम्पति सुमति विराजत ||30||
गंगहि नेम सहित नित ध्यावत ।
दुर्जनहु सज्जन पद पावत ||31||
बुद्धिहीन विद्या बल पावै ।
रोगी रोग मुक्त ह्वै जावै ||32||
गंगा गंगा जो नर कहहि ।
भूखा नंगा कबहुँ न रहहि ||33||
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निकसत ही मुख गंगा माई ।
आनन दवि यम चलहिं पराई ||34||
महान अघिन अधमन कहँ तारे ।
भये नरक के बन्द किवारे ||35||
जो नर जपै गंग शत नामा ।
सकल सिद्धि पूरन ह्वै कामा ||36||
सब सुख भोग परम पद पावहिं ।
अवागमन रहित ह्वै जावहिं ||37||
धनि मैया सुरसरि सुखदायिनी ।
धनि धनि तीर्थराज त्रिवेणी ||38||
ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा ।
सुन्दरदास गंगा कर दासा ||39||
जो यह पढ़े गंगा चालीसा ।
मिलै भक्ति अविरल वागीशा ||40||
॥ दोहा ॥
नित नव सुख सम्पति लहै, धरे गंगा का ध्यान ।
अंत समय सुरपुर बसै, सादर बैठि विमान ॥
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