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हनुमान अष्टोत्तर शतनामावली स्तोत्रम् || Hanuman Ashtottara Shatanamavali Stotram
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हनुमान अष्टोत्तर शतनामावली स्तोत्रम् || Hanuman Ashtottara Shatanamavali Stotram
(पाञ्चरात्रागमतः)
रामदासाग्रणीः श्रीमान् हनूमान् पवनात्मजः ।
आञ्जनेयः कपिश्रेष्ठः केसरीप्रियनन्दनः ॥ १॥
आरोपितांसयुगलरामरामानुजः सुधीः ।
सुग्रीवसचिवो वालिजितसुग्रीवमाल्यदः ॥ २॥
रामोपकारविस्मर्तृसुग्रीवसुमतिप्रदः ।
सुग्रीवसत्पक्षपाती रामकार्यसुसाधकः ॥ ३॥
मैनाकाश्लेषकृन्नागजननीजीवनप्रदः ।
सर्वदेवस्तुतः सर्वदेवानन्दविवर्धनः ॥ ४॥
छायान्त्रमालाधारी च छायाग्रहविभेदकः ।
सुमेरुसुमहाकायो गोष्पदीकृतवारिधिः ॥
बिडालसदृशाकारस्तप्तताम्रसमाननः ।
लङ्कानिभञ्जनः सीताराममुद्राङ्गुलीयदः ॥ ६॥
रामचेष्टानुसारेण चेष्टाकृद्विश्वमङ्गलः ।
श्रीरामहृदयाभिज्ञो निःशेषसुरपूजितः ॥ ७॥
अशोकवनसञ्च्छेत्ता शिंशुपावृक्षरक्षकः ।
सर्वरक्षोविनाशार्थं कृतकोलाहलध्वनिः ॥ ८॥
तलप्रहारतः क्षुण्णबहुकोटिनिशाचरः ।
पुच्छघातविनिष्पिष्टबहुकोटिनराशनः ॥ ९॥
जम्बुमाल्यन्तकः सर्वलोकान्तरसुतः कपिः ।
स्वदेहप्राप्तपिष्टाङ्गदुर्धर्षाभिधराक्षसः ॥ १०॥
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तलचूर्णितयूपाक्षो विरूपाक्षनिबर्हणः ।
सुरान्तरात्मनः पुत्रो भासकर्णविनाशकः ॥ ११॥
अद्रिशृङ्गविनिष्पिष्टप्रघसाभिधराक्षसः ।
दशास्यमन्त्रिपुत्रघ्नः पोथिताक्षकुमारकः ॥ १२॥
सुवञ्चितेन्द्रजिन्मुक्तनानाशस्त्रास्त्रवृष्टिकः ।
इन्द्रशत्रुविनिर्मुक्तशस्त्राचाल्यसुविग्रहः ॥ १३॥
सुखेच्छयेन्द्रजिन्मुक्तब्रह्मास्त्रवशगः कृती ।
तृणीकृतेन्द्रजित्पूर्वमहाराक्षसयूथपः ॥ १४॥
रामविक्रमसत्सिन्धुस्तोत्रकोपितरावणः ।
स्वपुच्छवह्निनिर्दग्धलङ्कालङ्कापुरेश्वरः ॥ १५॥
वह्न्यनिर्दग्धाच्छपुच्छः पुनर्लङ्घितवारिधिः ।
जलदैवतसूनुश्च सर्ववानरपूजितः ॥ १६॥
सन्तुष्टःकपिभिः सार्धं सुग्रीवमधुभक्षकः ।
रामपादार्पितश्रीमच्चूडामणिरनाकुलः ॥ १७॥
भक्त्याकृतानेकरामप्रणामो वायुनन्दनः ।
रामालिङ्गनतुष्टाङ्गो रामप्राणप्रियः शुचिः ॥ १८॥
रामपादैकनिरतविभीषणपरिग्रहः ।
विभीषणश्रियः कर्ता रामलालितनीतिमान् ॥ १९॥
विद्रावितेन्द्रशत्रुश्च लक्ष्मणैकयशःप्रदः ।
शिलाप्रहारनिष्पिष्टधूम्राक्षरथसारथिः ॥ २०॥
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गिरिशृङ्गविनिष्पिष्टधूम्राक्षो बलवारिधिः ।
अकम्पनप्राणहर्ता पूर्णविज्ञानचिद्घनः ॥ २१॥
रणाध्वरे कण्ठरोधमारितैकनिकुम्भकः ।
नरान्तकरथच्छेत्ता देवान्तकविनाशकः ॥ २२॥
मत्ताख्यराक्षसच्छेत्ता युद्धोन्मत्तनिकृन्तनः ।
त्रिशिरोधनुषश्छेत्ता त्रिशिरःखड्गभञ्जनः ॥ २३॥
त्रिशिरोरथसंहारी त्रिशिरस्त्रिशिरोहरः ।
रावणोरसि निष्पिष्टमुष्टिर्दैत्यभयङ्करः ॥ २४॥
वज्रकल्पमहामुष्टिघातचूर्णितरावणः ।
अशेषभुवनाधारो लक्ष्मणोद्धरणक्षमः ॥ २५॥
सुग्रीवप्राणरक्षार्थं मक्षिकोपमविग्रहः ।
कुम्भकर्णत्रिशूलैकसञ्छेत्ता विष्णुभक्तिमान् ॥ २६॥
नागास्त्रास्पृष्टसद्देहः कुम्भकर्णविमोहकः ।
शस्त्रास्त्रास्पृष्टसद्देहः सुज्ञानी रामसम्मतः ॥ २७॥
अशेषकपिरक्षार्थमानीतौषधिपर्वतः ।
स्वशक्त्या लक्ष्मणोद्धर्ता लक्ष्मणोज्जीवनप्रदः ॥ २८॥
लक्ष्मणप्राणरक्षार्थमानीतौषधिपर्वतः ।
तपःकृशाङ्गभरते रामागमनशंसकः ॥ २९॥
रामस्तुतस्वमहिमा सदा सन्दृष्टराघवः ।
रामच्छत्रधरो देवो वेदान्तपरिनिष्ठितः ॥ ३०॥
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मूलरामायणसुधासमुद्रस्नानतत्परः ।
बदरीषण्डमध्यस्थनारायणनिषेवकः ॥ ३१॥
इत्येतच्छ्रीहनूमतो नामनमष्टोत्तरं शतम् ।
पठतां शृण्वतां चैव नित्यमभ्यसतां सताम् ॥ ३२॥
अनन्तपुण्यफलदं महापातकनाशनम् ।
महारोगप्रशमनं महादुःखविनाशनम् ॥ ३३॥
दुस्तरापत्प्रशमनं तापत्रयविनाशनम् ।
रामक्रोधादिशमनं बाह्यशत्रुविनाशनम् ॥ ३४॥
अनाद्यज्ञानशमनं संसारभयनाशनम् ।
महाबन्धहरं सम्यक् कर्मबन्धनिकृन्तनम् ॥ ३५॥
वादे विजयदं नित्यं रणे शत्रुविनाशनम् ।
धनधान्यप्रदं सम्यक् पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् ॥ ३६॥
किमत्र बहुनोक्तेन मोक्षैकफलदं सताम् ।
पूर्णानुग्रहतो विष्णोर्यो वायुर्मोक्षदः सताम् ॥
तस्य स्तोत्रस्य माहात्म्यं कोऽपि वर्णयितुं क्षमः ।
श्रुतिस्मृतिपुराणानि भारताद्युक्तयस्तथा ॥ ३८॥
अस्मिन्नर्थे प्रमाणानि सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ।
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं नात्र कार्या विचारणा ॥ ३९॥
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