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श्री हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Shri Hanuman Ashtottara Shatanama Stotram
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श्री हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Shri Hanuman Ashtottara Shatanama Stotram
श्रीपराशरः –
स्तोत्रान्तरं प्रवक्ष्यामि शृणु मैत्रेय तत्त्वतः ।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां हनुमत्प्रतिपादकम् ॥
आयुरारोग्यफलदं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् ।
गुह्याद्गुह्यतमं स्तोत्रं सर्वपापहरं नृणाम् ॥
अस्य श्रीहनुमदष्टोत्तरशतदिव्यनामस्तोत्रमन्त्रस्य विभीषण ऋषिः ।
पङ्क्ती छन्दः । श्रीहनुमान् परमात्मा देवता ।
मारुतात्मज इति बीजम् । अञ्जनासूनुरिति शक्तिः ।
वायुपुत्र इति कीलकम् ।
मम श्रीहनुमत्प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥
श्री अभूतपूर्वडिम्भ श्री अञ्जनागर्भ सम्भवः ।
नभस्वद्वरसम्प्राप्तो दीप्तकालाग्निसम्भवः ॥ १॥
भूनभोऽन्तरभिन्नादस्फुरद्गिरिगुहामुखः ।
भानुबिम्बफलोत्साहो पलायितविधुन्तुदः ॥ २॥
ऐरावतग्रहाव्यग्रो कुलिशग्रसनोन्मुखः ।
सुरासुरायुधाभेद्यो विद्यावेद्यवरोदयः ॥ ३॥
हनुमानिति विख्यातो प्रख्यातबलपौरुषः ।
शिखावान् रत्नमञ्जीरो स्वर्णकृष्णोत्तरच्छदः ॥ ४॥
विद्युद्वलययज्ञोपवीतद्युमणिमण्डनः ।
हेममौञ्जीसमाबद्धशुद्धजाम्बूनदप्रभः ॥ ५॥
कनत्कनककौपीनो वटुर्वटुशिखामणिः ।
सिंहसंहननाकारो तरुणार्कनिभाननः ॥ ६॥
वशंवदीकृतमनास्तप्तचामीकरेक्षणः ।
वज्रदेहो वज्रनखः वज्रस्पर्शोग्रवालजः ॥ ७॥
अव्याहतमनोवेगो हरिर्दाशरथानुगः ।
सारग्रहणचातुर्यश्शब्दब्रह्मैकपारगः ॥ ८॥
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पम्पानदीचरो वाग्मी रामसुग्रीवसख्यकृत् ।
स्वामिमुद्राङ्कितकरो क्षितिजान्वेषणोद्यमः ॥ ९॥
स्वयम्प्रभासमालोको बिलमार्गविनिर्गमः ।
आम्बोधिदर्शनोद्विग्नमानसोङ्गदधैर्यदः ॥ १०॥
प्रायोपदिष्टप्लवगप्राणत्रातपरायणः ।
अदेवदानवगतिः अप्रतिद्वन्द्वसाहसः ॥ ११॥
स्वदेहसम्भवज्जङ्घामेरुद्रोणीकृतार्णव ।
मेरु सागरश्रुतवृत्तान्तमैनाककृतपूजनः ॥ १२॥
अणोरणीयान्महतो महीयान् सुरसाऽर्थितः ।
त्रिंशद्योजनपर्यन्तच्छायाछायाग्रहान्तकः ॥ १३॥
लङ्काहङ्कारशमनश्शङ्काटङ्कविवर्जितः ।
हस्तामलकवदृष्टराक्षसान्तः पुराखिलः ॥ १४॥
चितादुरन्तवैदेहीसम्पादनफलश्रमः ।
मैथिलीदत्तमाणिक्यो भिन्नाशोकवनद्रुमः ॥ १५॥
बलैकदेशक्षपणः कुमाराक्षनिषूदनः ।
घोषितस्वामिविजयस्तोरणारोहणोच्छ्रियः ॥ १६॥
रणरङ्गसमुत्साहो रघुवंशजयध्वजः ।
इन्द्रजिद्युद्धनिर्भीतो ब्रह्मास्त्रपरिवर्तनः ॥ १७॥
प्रभाषितदशग्रीवो भस्मसात्कृतपट्टणः ।
वार्धिनाशान्तवालर्चिः कृतकृत्योत्तमोत्तमः ॥ १८॥
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कल्लोलास्फालवेलान्तपारावारोपरिप्लवः ।
स्वर्गमाकाङ्क्षकीशौघद्दृक्चकोरेन्दुमण्डलः ॥ १९॥
मधुकाननसर्वस्वसन्तर्पितवलीमुखः ।
दृष्टा सीतेति वचनात्कोसलेन्द्राभिनन्दितः ॥ २०॥
स्कन्धस्थकोदण्डधरः कल्पान्तघननिस्वनः ।
सिन्धुबन्धनसन्नाहस्सुवेलारोहसम्भ्रमः ॥ २१॥
अक्षाख्यबलसंरुद्धलङ्काप्राकारभञ्जनः ।
युध्यद्वानरदैतेयजयापजयसाधनः ॥ २२॥
रामरावणशस्त्रास्त्रज्वालाजालनिरीक्षणः ।
मुष्टिनिर्भिन्नदैत्येन्द्रो मुहुर्नुतनभश्चरः ॥ २३॥
जाम्बवन्नुतिसंहृष्टो समाक्रान्तनभश्चरः ।
गन्धर्वगर्वविध्वंसी वश्यद्दिव्यौषधीनगः ॥ २४॥
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सौमित्रिमूर्छाशान्त्यर्थे प्रत्यूषस्तुष्टवानरः ।
रामास्त्रध्वंसितेन्द्रारिसैन्यविन्यस्तविक्रमः ॥ २५॥
हर्षविस्मितभूपुत्रीजयवृत्तान्तसूचकः ।
राघवीराघवारूढपुष्पकारोहकौतुकः ॥ २६॥
प्रियवाक्तोषितगुहो भरतानन्ददायकः ।
श्रीसीतारामपट्टाभिषेकसम्भारसम्भ्रमः ॥ २७॥
काकुत्स्थदयितादत्तमुक्ताहारविराजितः ।
रामायणसुधास्वादरसिको रामकिङ्करः ॥ २८॥
अमोघमन्त्रयन्त्रौघस्मृतिनिर्घूतकल्मषः भजत्किम्पुरुषद्वीपो भविष्यत्पद्मसम्भवः ।
आपदुद्धारकः श्रीमान् सर्वाभीष्टफलप्रदः ॥ २९॥
नामानीमानि यः कश्चिदनन्यगतिकः पठेत् ।
मृत्योर्मुखे राजमुखे निपतन्नावसीदति ॥ ३०॥
विश्वाकर्षणविद्वेषस्तम्भनोच्चाटनादयः ।
सिध्यन्ति पठनादेव नात्र शङ्का कुरु क्वचित् ॥ ३१॥
नामसङ्ख्याप्यपूपानि योदत्ते मन्दवासरे ।
छायेव तस्य सततं सहायो मारुतिर्भवेत् ॥ ३२॥
॥ इति श्रीहनुमदष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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