Sri Varaha Ashtottara Shatanama Stotra || श्री वराह अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्

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श्री वराह अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Sri Varaha Ashtottara Shatanama Stotra

Sri Varaha Ashtottara Shatanama Stotram भगवान श्री विष्णु जी को समर्पित हैं ! भगवान श्री विष्णु जी का ही वराह अवतार हैं ! भगवान श्री विष्णु जी ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी की रक्षा की थी ! यह Sri Varaha Ashtottara Shatanama Stotram श्रीवराहपुराण के अंतर्गत से लिया गया हैं!! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Sri Varaha Ashtottara Shatanama Stotra By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री वराह अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Sri Varaha Ashtottara Shatanama Stotra

वराहो वरदो वन्द्यो वरेण्यो वसुदेवभाः ।

वषट्कारो वसुनिधिर्वसुधोद्धरणो वसुः ॥ १॥

वसुदेवो वसुमतीदंष्ट्रो वसुमतीप्रियः ।

वनधिस्तोमरोमान्धु र्वज्ररोमा वदावदः ॥ २॥

वलक्षाङ्गो वश्यविश्वो वसुधाधरसन्निभः ।

वनजोदरदुर्वारविषादध्वंसनोदयः ॥ ३॥

वल्गत्सटाजातवातधूतजीमूतसंहतिः ।

वज्रदंष्ट्राग्रविच्छिन्न हिरण्याक्षधराधरः ॥ ४॥

वशिष्टाद्यर्षिनिकरस्तूयमानो वनायनः ।

वनजासनरुद्रेन्द्रप्रसादित महाशयः ॥ ५॥

वरदानविनिर्धूतब्रह्मब्राह्मणसंशयः ।

वल्लभो वसुधाहारिरक्षोबलनिषूदनः ॥ ६॥

वज्रसारखुराघातदलिताब्धिरसाहिवः ।

वलाद्वालोत्कटाटोपध्वस्तब्रह्माण्डकर्परः ॥ ७॥

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वदनान्तर्गतायात ब्रह्माण्डश्वासपद्धतिः ।

वर्चस्वी वरदंष्ट्राग्रसमुन्मीलितदिक्तटः ॥ ८॥

वनजासननासान्तर्हंसवाहावरोहितः ।

वनजासनदृक्पद्मविकासाद्भुतभास्करः ॥ ९॥

वसुधाभ्रमरारूढदंष्ट्रापद्माग्रकेसरः ।

वसुधाधूममषिका रम्यदंष्ट्राप्रदीपकः ॥ १०॥

वसुधासहस्रपत्रमृणालायित दंष्ट्रिकः ।

वसुधेन्दीवराक्रान्तदंष्ट्राचन्द्रकलाञ्चितः ॥ ११॥

वसुधाभाजनालम्बदंष्ट्रारजतयष्टिकः ।

वसुधाभूधरावेधि दंष्ट्रासूचीकृताद्भुतः ॥ १२॥

वसुधासागराहार्यलोकलोकपधृद्रदः ।

वसुधावसुधाहारिरक्षोधृच्छृङ्गयुग्मकः ॥ १३॥

वसुधाधस्समालम्बिनालस्तम्भ प्रकम्पनः ।

वसुधाच्छत्ररजतदण्डच्छृङ्गमनोरमः ॥ १४॥

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वतंसीकृतमन्दारो वलक्षीकृतभूतलः ।

वरदीकृतवृत्तान्तो वसुधीकृतसागरः ॥ १५॥

वश्यमायो वरगुणक्रियाकारो वराभिधः ।

वरुणालयवास्तव्यजन्तुविद्राविघुर्घुरः ॥ १६॥

वरुणालयविच्छेत्ता वरुणादिदुरासदः ।

वनजासनसन्तानावनजात महाकृपः ॥ १७॥

वत्सलो वह्निवदनो वराहवमयो वसुः ।

वनमाली वन्दिवेदो वयस्थो वनजोदरः ॥ १८॥

वेदत्वचे वेदविदे वेदिने वेदवादिने ।

वेदवेदाङ्गतत्त्वज्ञ नमस्ते वेदमूर्तये ॥ १९॥

वेदविद्वेद्य विभवो वेदेशो वेदरक्षणः ।

वेदान्तसिन्धुसञ्चारी वेददूरः पुनातु माम् ॥ २०॥

वेदान्तसिन्धुमध्यस्थाचलोद्धर्ता वितानकृत् ।

वितानेशो वितानाङ्गो वितानफलदो विभुः ॥ २१॥

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वितानभावनो विश्वभावनो विश्वरूपधृत् ।

विश्वदंष्ट्रो विश्वगर्भो विश्वगो विश्वसम्मतः ॥ २२॥

वेदारण्यचरो वामदेवादिमृगसंवृतः ।

विश्वातिक्रान्तमहिमा पातु मां वन्यभूपतिः ॥ २३॥

वैकुण्ठकोलो विकुण्ठलीलो विलयसिन्धुगः ।

वप्तःकबलिताजाण्डो वेगवान् विश्वपावनः ॥ २४॥

विपश्चिदाशयारण्यपुण्यस्फूर्तिर्विशृङ्खलः ।

विश्वद्रोहिक्षयकरो विश्वाधिकमहाबलः ॥ २५॥

वीर्यसिन्धुर्विवद्बन्धुर्वियत्सिन्धुतरङ्गितः ।

व्यादत्तविद्वेषिसत्त्वमुस्तो विश्वगुणाम्बुधिः ॥ २६॥

विश्वमङ्गलकान्तार कृतलीलाविहार ते ।

विश्वमङ्गलदोत्तुङ्ग करुणापाङ्ग सन्नतिः ॥ २७॥

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