श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनामावली || Shri Batuk Bhairav Ashtottara Shatanamavali || Batuk Bhairav Ashtottara Shatanamavali

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श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनामावली || Shri Batuk Bhairav Ashtottara Shatanamavali || Batuk Bhairav Ashtottara Shatanamavali

यह तो आप सब पहले से जानते है की जीवन में आने वाली समस्त प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए भैरव देवता की आराधना का बहुत महत्व रखती है । यदि आप खास तौर से भैरव अष्टमी वाले दिन या शनिवार वाले दिन यदि आप श्री बटुक-भैरव-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्र का पाठ करें, तो आपको निश्चित ही आपके सारे कार्य सफल और सार्थक हो जाएंगे, साथ ही आप अपने व्यापार, व्यवसाय और जीवन में आने वाली समस्या, विघ्न, बाधा, शत्रु, कोर्ट कचहरी, और मुकदमे में आदि में पूर्ण सफलता प्राप्त करेंगे ! श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनामावलीके बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Shri Batuk Bhairav Ashtottara Shatanamavali By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनामावली || Shri Batuk Bhairav Ashtottara Shatanamavali || Batuk Bhairav Ashtottara Shatanamavali

।। पूर्व-पीठिका ।।

मेरु-पृष्ठ पर सुखासीन, वरदा देवाधिदेव शंकर से –

पूछा देवी पार्वती ने, अखिल विश्व-गुरु परमेश्वर से ।

जन-जन के कल्याण हेतु, वह सर्व-सिद्धिदा मन्त्र बताएँ –

जिससे सभी आपदाओं से साधक की रक्षा हो, वह सुख पाए ।

शिव बोले, आपद्-उद्धारक मन्त्र, स्तोत्र हूं मैं बतलाता,

देवि ! पाठ जप कर जिसका, है मानव सदा शान्ति-सुख पाता ।

।। ध्यान ।।

सात्विकः-

बाल-स्वरुप वटुक भैरव-स्फटिकोज्जवल-स्वरुप है जिनका,

घुँघराले केशों से सज्जित-गरिमा-युक्त रुप है जिनका,

दिव्य कलात्मक मणि-मय किंकिणि नूपुर से वे जो शोभित हैं,

भव्य-स्वरुप त्रिलोचन-धारी जिनसे पूर्ण-सृष्टि सुरभित है ।

कर-कमलों में शूल-दण्ड-धारी का ध्यान-यजन करता हूँ,

रात्रि-दिवस उन ईश वटुक-भैरव का मैं वन्दन करता हूँ ।

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राजसः-

नवल उदीयमान-सविता-सम, भैरव का शरीर शोभित है,

रक्त-अंग-रागी, त्रैलोचन हैं जो, जिनका मुख हर्षित है ।

नील-वर्ण-ग्रीवा में भूषण, रक्त-माल धारण करते हैं,

शूल, कपाल, अभय, वर-मुद्रा ले साधक का भय हरते हैं ।

रक्त-वस्त्र बन्धूक-पुष्प-सा जिनका, जिनसे है जग सुरभित,

ध्यान करुँ उन भैरव का, जिनके केशों पर चन्द्र सुशोभित ।

तामसः-

तन की कान्ति नील-पर्वत-सी, मुक्ता-माल, चन्द्र धारण कर,

पिंगल-वर्ण-नेत्रवाले वे ईश दिगम्बर, रुप भयंकर ।

डमरु, खड्ग, अभय-मुद्रा, नर-मुण्ड, शुल वे धारण करते,

अंकुश, घण्टा, सर्प हस्त में लेकर साधक का भय हरते ।

दिव्य-मणि-जटित किंकिणि, नूपुर आदि भूषणों से जो शोभित,

भीषण सन्त-पंक्ति-धारी भैरव हों मुझसे पूजित, अर्चित ।

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।। १०८ नामावली श्रीबटुक-भैरव ।।

भैरव, भूतात्मा, भूतनाथ को है मेरा शत-शत प्रणाम ।

क्षेत्रज्ञ, क्षेत्रदः, क्षेत्रपाल, क्षत्रियः भूत-भावन जो हैं,

जो हैं विराट्, जो मांसाशी, रक्तपः, श्मशान-वासी जो हैं,

स्मरान्तक, पानप, सिद्ध, सिद्धिदः वही खर्पराशी जो हैं,

वह सिद्धि-सेवितः, काल-शमन, कंकाल, काल-काष्ठा-तनु हैं ।

उन कवि-स्वरुपः, पिंगल-लोचन, बहु-नेत्रः भैरव को प्रणाम ।

वह देव त्रि-नेत्रः, शूल-पाणि, कंकाली, खड्ग-पाणि जो हैं,

भूतपः, योगिनी-पति, अभीरु, भैरवी-नाथ भैरव जो हैं,

धनवान, धूम्र-लोचन जो हैं, धनदा, अधन-हारी जो हैं,

जो कपाल-भृत हैं, व्योम-केश, प्रतिभानवान भैरव जो हैं,

उन नाग-केश को, नाग-हार को, है मेरा शत-शत प्रणाम ।

कालः कपाल-माली त्रि-शिखी कमनीय त्रि-लोचन कला-निधि

वे ज्वलक्षेत्र, त्रैनेत्र-तनय, त्रैलोकप, डिम्भ, शान्त जो हैं,

जो शान्त-जन-प्रिय, चटु-वेष, खट्वांग-धारकः वटुकः हैं,

जो भूताध्यक्षः, परिचारक, पशु-पतिः, भिक्षुकः, धूर्तः हैं,

उन शुर, दिगम्बर, हरिणः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।

जो पाण्डु-लोचनः, शुद्ध, शान्तिदः, वे जो हैं भैरव प्रशान्त,

शंकर-प्रिय-बान्धव, अष्ट-मूर्ति हैं, ज्ञान-चक्षु-धारक जो हैं,

हैं वहि तपोमय, हैं निधीश, हैं षडाधार, अष्टाधारः,

जो सर्प-युक्त हैं, शिखी-सखः, भू-पतिः, भूधरात्मज जो हैं,

भूधराधीश उन भूधर को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।

नीलाञ्जन-प्रख्य देह-धारी, सर्वापत्तारण, मारण हैं,

जो नाग-यज्ञोपवीत-धारी, स्तम्भी, मोहन, जृम्भण हैं,

वह शुद्धक, मुण्ड-विभूषित हैं, जो हैं कंकाल धारण करते,

मुण्डी, बलिभुक्, बलिभुङ्-नाथ, वे बालः हैं, वे क्षोभण हैं ।

उन बाल-पराक्रम, दुर्गः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।

जो कान्तः, कामी, कला-निधिः, जो दुष्ट-भूत-निषेवित हैं,

जो कामिनि-वश-कृत, सर्व-सिद्धि-प्रद भैरव जगद्-रक्षाकर हैं,

जो वशी, अनन्तः हैं भैरव, वे माया-मन्त्रौषधि-मय हैं,

जो वैद्य, विष्णु, प्रभु सर्व-गुणी, मेरे आपद्-उद्धारक हैं ।

उन सर्व-शक्ति-मय भैरव-चरणों में मेरा शत-शत प्रणाम ।

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।। फल-श्रुति ।।

इन अष्टोत्तर-शत नामों को-भैरव के जो पढ़ता है,

शिव बोले – सुख पाता, दुख से दूर सदा वह रहता है ।

उत्पातों, दुःस्वप्नों, चोरों का भय पास न आता है,

शत्रु नष्ट होते, प्रेतों-रोगों से रक्षित रहता है ।

रहता बन्धन-मुक्त, राज-भय उसको नहीं सताता है,

कुपित ग्रहों से रक्षा होती, पाप नष्ट हो जाता है ।

अधिकाधिक पुनुरुक्ति पाठ की, जो श्रद्धा-पूर्वक करते हैं,

उनके हित कुछ नहीं असम्भव, वे निधि-सिद्धि प्राप्त करते हैं ।

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