रवि त्रयोदशी प्रदोष व्रत कथा [ Ravi Trayodashi Pradosh Vrat Katha & Ravi Pradosh Vrat Katha ]
रवि प्रदोष व्रत का महत्व : ravi pradosh vrat ka mahatva in hindi
त्रयोदशी अर्थात् प्रदोष का व्रत करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। उसके सम्पूर्ण पापों का नाश इस व्रत से हो जाता है। इस व्रत के करने से सुहागन नारियों का सुहाग सदा अटल रहता है, बंदी कारागार से छूट जाता है। जो स्त्री पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते हैं, उनकी सभी कामनाएं कैलाशपति शंकर जी पूरी करते हैं। सूत जी कहते हैं- त्रयोदशी व्रत करने वाले को सौ गऊ दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को जो विधि विधान और तन, मन, धन से करता है उसके सभी दु:ख दूर हो जाते हैं।
॥ दोहा ॥
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आयु, बुद्धि, आरोग्यता, या चाहो सन्तान ।
शिव पूजन विधवत् करो, दुःख हरे भगवान ॥
किसी समय सभी प्राणियों के हितार्थ परम् पुनीत गंगा के तट पर ऋषि समाज द्वारा एक विशाल सभा का आयोजन किया गया, जिसमें व्यास जी के परम् प्रिय शिष्य पुराणवेत्ता सूत जी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधारे । शौनकादि अट्ठासी हजार ऋषि-मुनिगण ने सूत जी को दण्डवत् प्रणाम किया । सूत जी ने भक्ति भाव से ऋषिगण को आशीर्वाद दे अपना स्थान ग्रहण किया ।
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ऋषिगण ने विनीत भाव से पूछा, “हे परम् दयालु! कलियुग में शंकर भगवान की भक्ति किस आराधना द्वारा उपलब्ध होगी? कलिकाल में जब मनुष्य पाप कर्म में लिप्त हो, वेद-शास्त्र से विमुख रहेंगे । दीनजन अनेक कष्टों से त्रस्त रहेंगे । हे मुनिश्रेष्ठ! कलिकाल में सत्कर्मं में किसी की रुचि न होगी, पुण्य क्षीण हो जाएंगे एवं मनुष्य स्वतः ही असत् कर्मों की ओर प्रेरित होगा । इस पृथ्वी पर तब ज्ञानी मनुष्य का यह कर्तव्य हो जाएगा कि वह पथ से विचलित मनुष्य का मार्गदर्शन करे, अतः हे महामुने! ऐसा कौन-सा उत्तम व्रत है जिसे करने से मनवांछित फल की प्राप्ति हो और कलिकाल के पाप शान्त हो जाएं?”
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सूत जी बोले- “हे शौनकादि ऋषिगण! आप धन्यवाद के पात्र हैं । आपके विचार प्रशंसनीय व जनकल्याणकारी हैं । आपके ह्रदय में सदा परहित की भावना रहती है, आप धन्य हैं । हे शौनकादि ऋषिगण! मैं उस व्रत का वर्णन करने जा रहा हूं जिसे करने से सब पाप और कष्ट नष्ट हो जाते हैं तथा जो धन वृद्धिकारक, सुख प्रदायक, सन्तान व मनवांछित फल प्रदान करने वाला है । इसे भगवान शंकर ने सती जी को सुनाया था।”
सूत जी आगे बोले- “आयु वृद्धि व स्वास्थ्य लाभ हेतु रवि त्रयोदशी प्रदोष का व्रत करें । इसमें प्रातः स्नान कर निराहार रहकर शिव जी का मनन करें ।
मन्दिर जाकर शिव आराधना करें । माथे पर त्रिपुण धारण कर बेल, धूप, दीप, अक्षत व ऋतु फल अर्पित करें । रुद्राक्ष की माला से सामर्थ्यानुसार, ॐ नमः शिवाय’ जपे । ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें, तत्पश्चात मौन व्रत धारण करें । संभव हो तो यज्ञ-हवन कराएं ।‘ॐ ह्रीं क्लीं नमः शिवाय स्वाहा’ मंत्र से यज्ञ-स्तुति दें । इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है । प्रदोष व्रत में व्रती एक बार भोजन करे और पृथ्वी पर शयन करे । इससे सर्व कार्य सिद्ध होते हैं । श्रावण मास में इस व्रत का विशेष महत्व है । सभी मनोरथ इस व्रत को करने से पूर्ण होते है । हे ऋषिगण! यह प्रदोष व्रत जिसका वृत्तांत मैंने सुनाया, किसी समय शंकर भगवान ने सती जी को और वेदव्यास मुनि ने मुझे सुनाया था ।”शौनकादि ऋषि बोले – “हे पूज्यवर! यह व्रत परम् गोपनीय, मंगलदायक और कष्ट हरता कहा गया है । कृपया बताएं कि यह व्रत किसने किया और उसे इससे क्या फल प्राप्त हुआ?”
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तब श्री सुत जी कथा सुनाने लगे –
रवि प्रदोष व्रत कथा !! ravi pradosh vrat katha in hindi
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“एक ग्राम में एक दीन-हीन ब्राह्मण रहता था । उसकी धर्मनिष्ठ पत्नी प्रदोष व्रत करती थी । उनके एक पुत्र था । एक बार वह पुत्र गंगा स्नान को गया । दुर्भाग्यवश मार्ग में उसे चोरों ने घेर लिया और डराकर उससे पूछने लगे कि उसके पिता का गुप्त धन कहां रखा है । बालक ने दीनतापूर्वक बताया कि वे अत्यन्त निर्धन और दुःखी हैं । उनके पास गुप्त धन कहां से आया । चोरों ने उसकी हालत पर तरस खाकर उसे छोड़ दिया । बालक अपनी राह हो लिया । चलते-चलते वह थककर चूर हो गया और बरगद के एक वृक्ष के नीचे सो गया । तभी उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उसी ओर आ निकले । उन्होंने ब्राह्मण-बालक को चोर समझकर बन्दी बना लिया और राजा के सामने उपस्थित किया । राजा ने उसकी बात सुने बगैर उसे कारावार में डलवा दिया । उधर बालक की माता प्रदोष व्रत कर रही थी । उसी रात्रि राजा को स्वप्न आया कि वह बालक निर्दोष है । यदि उसे नहीं छोड़ा गया तो तुम्हारा राज्य और वैभव नष्ट हो जाएगा । सुबह जागते ही राजा ने बालक को बुलवाया । बालक ने राजा को सच्चाई बताई । राजा ने उसके माता-पिता को दरबार में बुलवाया । उन्हें भयभीत देख राजा ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘तुम्हारा बालक निर्दोष और निडर है । तुम्हारी दरिद्रता के कारण हम तुम्हें पांच गांव दान में देते हैं ।’ इस तरह ब्राह्मण आनन्द से रहने लगा । शिव जी की दया से उसकी दरिद्रता दूर हो गई।”
उक्त कथा सुनने के बाद शौनकादि ऋषि बोले- “हे दयालु! कृपया अब आप सोम त्रयोदशी प्रदोष व्रत के बारे में बताइए।”
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