Papmochani Ekadashi Vrat Katha || पापमोचनी एकादशी व्रत कथा || Papmochani Gyaras Vrat Kahani

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पापमोचनी एकादशी व्रत कथा || Papmochani Ekadashi Vrat Katha || Papmochani Gyaras Vrat Kahani

पापमोचनी एकादशी ( papmochani ekadashi ) चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन मनाई जाती हैं ! यानी आती हैं ! पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से या श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं ।

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पापमोचनी एकादशी कब हैं ? 2020 || Papmochani Ekadashi Kab Hai 2020

पापमोचनी एकादशी ( papmochani ekadashi ) को मार्च महीने की 19 तारीख़, वार गुरुवार के दिन बनाई जायेगीं !

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा || Papmochani Ekadashi Vrat Katha

धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले- हे जनार्दन ! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है ? कृपा करके आप मुझे बताइए । श्री भगवान बोले हे राजन् – चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पापमोचनी एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य के सभी पापों का नाश होता हैं। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस पापमोचनी एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज ! आप मुझसे चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान कहिए।

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ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद ! चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी पापमोचनी एकादशी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता हैं। इसकी कथा के अनुसार प्राचीन समय में चित्ररथ नामक एक रमणिक वन था। इस वन में देवराज इन्द्र गंधर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित स्वच्छंद विहार करते थे । Papmochani Ekadashi Vrat Katha

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एक बार मेधावी नामक ऋषि भी वहाँ पर तपस्या कर रहे थे । वे ऋषि शिव उपासक तथा अप्सराएँ शिव द्रोहिणी अनंग दासी (अनुचरी) थी। एक बार कामदेव ने मुनि का तप भंग करने के लिए उनके पास मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। युवावस्था वाले मुनि अप्सरा के हाव भाव, नृत्य, गीत तथा कटाक्षों पर काम मोहित हो गए। रति-क्रीडा करते हुए 57 वर्ष व्यतीत हो गए।

एक दिन मंजुघोषा ने देवलोक जाने की आज्ञा माँगी। उसके द्वारा आज्ञा माँगने पर मुनि को भान आया और उन्हें आत्मज्ञान हुआ कि मुझे रसातल में पहुँचाने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजुघोषा ही हैं। क्रोधित होकर उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया । Papmochani Ekadashi Vrat Katha

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श्राप सुनकर मंजुघोषा ने काँपते हुए ऋषि से मुक्ति का उपाय पूछा। तब मुनिश्री ने पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने को कहा। और अप्सरा को मुक्ति का उपाय बताकर पिता च्यवन के आश्रम में चले गए। पुत्र के मुख से श्राप देने की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने पुत्र की घोर निन्दा की तथा उन्हें पापमोचनी चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने की आज्ञा दी। व्रत के प्रभाव से मंजुघोष अप्सरा पिशाचनी देह से मुक्त होकर देवलोक चली गई।

अत: हे नारद! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, उसके सारों पापों की मुक्ति होना निश्चित है। और जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता और सुनता है उसे सारे संकटों से मुक्ति मिल जाती है। Papmochani Ekadashi Vrat Katha

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