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नारायण स्तोत्र || Narayana Stotram || Narayana Stotra
नारायण स्तोत्रम् भगवान श्री विष्णु जी को समर्पित हैं ! नारायण स्तोत्रम् आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें :9667189678 Narayana Stotram By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.
नारायण स्तोत्रम् || Narayana Stotram || Narayana Stotra
हरिः ॐ नमो भगवते श्रीनारायणाय नमो नारायणाय विश्वमूर्तये नमः श्री पुरुषोत्तमाय पुष्पदृष्टिं प्रत्यक्षं वा परोक्षं अजीर्णं पञ्चविषूचिकां हन हन ऐकाहिकं द्वयाहिकं त्र्याहिकं चातुर्थिकं ज्वरं नाशय नाशय चतुरशितिवातानष्टादशकुष्ठान् अष्टादशक्षय रोगान् हन हन सर्वदोषान् भंजय भंजय तत्सर्वं नाशय नाशय आकर्षय आकर्षय शत्रून् शत्रून् मारय मारय उच्चाटयोच्चाटय विद्वेषय विदे्वेषय स्तंभय स्तंभय निवारय निवारय विघ्नैर्हन विघ्नैर्हन दह दह मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ चक्रेण हत्वा परविद्यां छेदय छेदय भेदय भेदय चतुःशीतानि विस्फोटय विस्फोटय अर्शवातशूलदृष्टि सर्पसिंहव्याघ्र द्विपदचतुष्पद पद बाह्यान्दिवि भुव्यन्तरिक्षे अन्येऽपि केचित् तान्द्वेषकान्सर्वान् हन हन विद्युन्मेघनदी पर्वताटवीसर्वस्थान रात्रिदिनपथचौरान् वशं कुरु कुरु हरिः ॐ नमो भगवते ह्रीं हुं फट् स्वाहा ठः ठं ठं ठः नमः ।।
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।। विधानम् ।।
एषा विद्या महानाम्नी पुरा दत्ता मरुत्वते । असुराञ्जितवान्सर्वाञ्च्छ क्रस्तु बलदानवान् ।।1।।
यः पुमान्पठते भक्त्या वैष्णवो नियतात्मना । तस्य सर्वाणि सिद्धयन्ति यच्च दृष्टिगतं विषम् ।।2।।
अन्यदेहविषं चैव न देहे संक्रमेद्ध्रुवम् । संग्रामे धारयत्यङ्गे शत्रून्वै जयते क्षणात् ।।3।।
अतः सद्यो जयस्तस्य विघ्नस्तस्य न जायते । किमत्र बहुनोक्तेन सर्वसौभाग्यसंपदः ।।4।।
लभते नात्र संदेहो नान्यथा तु भवेदिति । गृहीतो यदि वा येन बलिना विविधैरपि ।।5।।
शतिं समुष्णतां याति चोष्णं शीतलतां व्रजेत् । अन्यथां न भवेद्विद्यां यः पठेत्कथितां मया ।।6।।
भूर्जपत्रे लिखेन्मंत्रं गोरोचनजलेन च । इमां विद्यां स्वके बद्धा सर्वरक्षां करोतु मे ।।7।।
पुरुषस्याथवा स्त्रीणां हस्ते बद्धा विचेक्षणः । विद्रवंति हि विघ्नाश्च न भवंति कदाचनः ।।8।।
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न भयं तस्य कुर्वंति गगने भास्करादयः । भूतप्रेतपिशाचाश्च ग्रामग्राही तु डाकिनी ।।9।।
शाकिनीषु महाघोरा वेतालाश्च महाबलाः । राक्षसाश्च महारौद्रा दानवा बलिनो हि ये ।।10।।
असुराश्च सुराश्चैव अष्टयोनिश्च देवता । सर्वत्र स्तम्भिता तिष्ठेन्मन्त्रोच्चारणमात्रतः ।।11।।
सर्वहत्याः प्रणश्यंति सर्व फलानि नित्यशः । सर्वे रोगा विनश्यंति विघ्नस्तस्य न बाधते ।।12।।
उच्चाटनेऽपराह्णे तु संध्यायां मारणे तथा । शान्तिके चार्धरात्रे तु ततोऽर्थः सर्वकामिकः ।।13।।
इदं मन्त्ररहस्यं च नारायणास्त्रमेव च । त्रिकालं जपते नित्यं जयं प्राप्नोति मानवः ।।14।।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं ज्ञानं विद्यां पराक्रमः । चिंतितार्थ सुखप्राप्तिं लभते नात्र संशयः ।।15।।
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