नारायण हृदय स्तोत्र || Narayana Hrudaya Stotram || Narayana Hridaya Stotram

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नारायण हृदय स्तोत्र || Narayana Hrudaya Stotram || Narayana Hridaya Stotram

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नारायण हृदय स्तोत्र || Narayana Hrudaya Stotram || Narayana Hridaya Stotram

अथ श्री नारायण हृदयम् आरम्भः ।।

हरिः ओम् ॥ अस्य श्रीनारायण-हृदय-स्तोत्र-महामन्त्रस्य भार्गव ऋषिः,

अनुष्टुप्छन्दः, लक्ष्मीनारायणो देवता, नारायण-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥

॥ करन्यासः ॥

नारायणः परं ज्योतिरिति अङ्गुष्ठाभ्यां नमः,

नारायणः परं ब्रह्मेति तर्जनीभ्यां नमः,

नारायणः परो देव इति मध्यमाभ्यां नमः,

नारायणः परं धामेति अनामिकाभ्यां नमः,

नारायणः परो धर्म इति कनिष्ठिकाभ्यां नमः,

विश्वं नारायण इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥

॥ अङ्गन्यासः ॥

नारायणः परं ज्योतिरिति हृदयाय नमः,

नारायणः परं ब्रह्मेति शिरसे स्वाहा,

नारायणः परो देव इति शिखायै वौषट्,

नारायणः परं धामेति कवचाय हुम्,

नारायणः परो धर्म इति नेत्राभ्यां वौषट्,

विश्वं नारायण इति अस्त्राय फट्,

भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बन्धः ॥

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॥ अथ ध्यानम् ॥

उद्यादादित्यसङ्काशं पीतवासं चतुर्भुजम् ।

शङ्खचक्रगदापाणिं ध्यायेल्लक्ष्मीपतिं हरिम् ॥१॥

त्रैलोक्याधारचक्रं तदुपरि कमठं तत्र चानन्तभोगी

तन्मध्ये भूमि-पद्माङ्कुश-शिखरदळं कर्णिकाभूत-मेरुम् ।

तत्रत्यं शान्तमूर्तिं मणिमय-मकुटं कुण्डलोद्भासिताङ्गं

लक्ष्मी-नारायणाख्यं सरसिज-नयनं सन्ततं चिन्तयामः ॥२॥

अस्य श्रीनारायणाहृदय-स्तोत्र-महामन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, नारायणो देवता, नारायण-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥

ॐ नारायणः परं ज्योति-रात्मा नारायणः परः ।

नारायणः परं ब्रह्म नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ३॥

नारायणः परो देवो धाता नारायणः परः ।

नारायणः परो धाता नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ४॥

नारायणः परं धाम ध्यानं नारायणः परः ।

नारायण परो धर्मो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ५॥

नारायणः परो देवो विद्या नारायणः परः ।

विश्वं नारायणः साक्षान् नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ६॥

नारायणाद् विधि-र्जातो जातो नारायणाद् भवः ।

जातो नारायणादिन्द्रो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ७॥

रवि-र्नारायण-स्तेजः चन्द्रो नारायणो महः ।

वह्नि-र्नारायणः साक्षात् नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ८॥

नारायण उपास्यः स्याद् गुरु-र्नारायणः परः ।

नारायणः परो बोधो नारायण नमोऽस्तु ते ॥ ९॥

नारायणः फलं मुख्यं सिद्धि-र्नारायणः सुखम् ।

हरि-र्नारायणः शुद्धि-र्नारायण नमोऽस्तु ते ॥ १०॥

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निगमावेदितानन्त-कल्याणगुण-वारिधे ।

नारायण नमस्तेऽस्तु नरकार्णव-तारक ॥ ११॥

जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-पारतन्त्र्यादिभिः सदा ।

दोषै-रस्पृष्टरूपाय नारायण नमोऽस्तु ते ॥ १२॥

वेदशास्त्रार्थविज्ञान-साध्य-भक्त्येक-गोचर ।

नारायण नमस्तेऽस्तु मामुद्धर भवार्णवात् ॥ १३॥

नित्यानन्द महोदार परात्पर जगत्पते ।

नारायण नमस्तेऽस्तु मोक्षसाम्राज्य-दायिने ॥ १४॥

आब्रह्मस्थम्ब-पर्यन्त-मखिलात्म-महाश्रय ।

सर्वभूतात्म-भूतात्मन् नारायण नमोऽस्तु ते ॥ १५॥

पालिताशेष-लोकाय पुण्यश्रवण-कीर्तन ।

नारायण नमस्तेऽस्तु प्रलयोदक-शायिने ॥ १६॥

निरस्त-सर्वदोषाय भक्त्यादि-गुणदायिने ।

नारायण नमस्तेऽस्तु त्वां विना न हि मे गतिः ॥ १७॥

धर्मार्थ-काम-मोक्षाख्य-पुरुषार्थ-प्रदायिने ।

नारायण नमस्तेऽस्तु पुनस्तेऽस्तु नमो नमः ॥ १८॥

॥ अथ प्रार्थना ॥

नारायण त्वमेवासि दहराख्ये हृदि स्थितः ।

प्रेरिता प्रेर्यमाणानां त्वया प्रेरित मानसः ॥ १९॥

त्वदाज्ञां शिरसा कृत्वा भजामि जन-पावनम् ।

नानोपासन-मार्गाणां भवकृद् भावबोधकः ॥ २०॥

भावार्थकृद् भवातीतो भव सौख्यप्रदो मम ।

त्वन्मायामोहितं विश्वं त्वयैव परिकल्पितम् ॥ २१॥

त्वदधिष्ठान-मात्रेण सा वै सर्वार्थकारिणी ।

त्वमेव तां पुरस्कृत्य मम कामान् समर्थय ॥ २२॥

न मे त्वदन्यस्त्रातास्ति त्वदन्यन्न हि दैवतम् ।

त्वदन्यं न हि जानामि पालकं पुण्यवर्धनम् ॥ २३॥

यावत्सांसारिको भावो मनस्स्थो भावनात्मकः ।

तावत्सिद्धिर्भवेत् साध्या सर्वदा सर्वदा विभो ॥ २४॥

पापिना-महमेकाग्रो दयालूनां त्वमग्रणीः ।

दयनीयो मदन्योऽस्ति तव कोऽत्र जगत्त्रये ॥ २५॥

त्वयाहं नैव सृष्टश्चेत् न स्यात्तव दयालुता ।

आमयो वा न सृष्टश्चे-दौषधस्य वृथोदयः ॥ २६॥

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पापसङ्ग-परिश्रान्तः पापात्मा पापरूप-धृक् ।

त्वदन्यः कोऽत्र पापेभ्यः त्रातास्ति जगतीतले ॥ २७॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥ २८॥

प्रार्थनादशकं चैव मूलष्टकमथःपरम् ।

यः पठेच्छृणुयान्नित्यं तस्य लक्ष्मीः स्थिरा भवेत् ॥ २९॥

नारायणस्य हृदयं सर्वाभीष्ट-फलप्रदम् ।

लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं यदि चैतद्विनाकृतम् ॥ ३०॥

तत्सर्वं निष्फलं प्रोक्तं लक्ष्मीः क्रुध्यति सर्वदा ।

एतत्सङ्कलितं स्तोत्रं सर्वाभीष्ट-फलप्रदम् ॥ ३१॥

जपेत् सङ्कलितं कृत्वा सर्वाभीष्ट-मवाप्नुयात् ।

नारायणस्य हृदयं आदौ जप्त्वा ततःपरम् ॥ ३२॥

लक्ष्मीहृदयकं स्तोत्रं जपेन्नारायणं पुनः ।

पुनर्नारायणं जप्त्वा पुनर्लक्ष्मीनुतिं जपेत् ॥३३॥

तद्वद्धोमाधिकं कुर्या-देतत्सङ्कलितं शुभम् ।

एवं मध्ये द्विवारेण जपेत् सङ्कलितं शुभम् ॥ ३४॥

लक्ष्मीहृदयके स्तोत्रे सर्वमन्यत् प्रकाशितम् ।

सर्वान् कामानवाप्नोति आधिव्याधि-भयं हरेत् ॥ ३५॥

गोप्यमेतत् सदा कुर्यात् न सर्वत्र प्रकाशयेत् ।

इति गुह्यतमं शास्त्रं प्रोक्तं ब्रह्मादिभिः पुरा ॥ ३६॥

लक्ष्मीहृदयप्रोक्तेन विधिना साधयेत् सुधीः ।

तस्मात् सर्वप्रयत्नेन साधयेद् गोपयेत् सुधीः ॥ ३७॥

यत्रैतत्पुस्तकं तिष्ठेत् लक्ष्मीनारायणात्मकम् ।

भूत पैशाच वेताळ भयं नैव तु सर्वदा ॥ ३८॥

भृगुवारे तथा रात्रौ पूजयेत् पुस्तकद्वयम् ।

सर्वदा सर्वदा स्तुत्यं गोपयेत् साधयेत् सुधीः ।

गोपनात् साधनाल्लोके धन्यो भवति तत्त्वतः ॥ ३९॥

॥ इत्यथर्वरहस्ये उत्तरभागे नारायण हृदय स्तोत्रं ॥

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