उज्ज्वल वेंकट नाथ स्तोत्र || Ujjwala Venkatanatha Stotram

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उज्ज्वल वेंकट नाथ स्तोत्र || Ujjwala Venkatanatha Stotram

उज्ज्वल वेंकटनाथ स्तोत्रम् भगवान श्री वेंकटनाथ जी को समर्पित हैं ! श्री उज्ज्वल वेंकटनाथ स्तोत्रम आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें :9667189678 Ujjwala Venkatanatha StotramBy Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.

उज्ज्वल वेंकट नाथ स्तोत्र || Ujjwala Venkatanatha Stotram

॥ उज्ज्वलवेङ्कटनाथस्तोत्रम् ॥

रङ्गे तुङ्गे कवेराचलजकनकनद्यन्तरङ्गे भुजङ्गे,

शेषे शेषे विचिन्वन् जगदवननयं भात्यशेषेऽपि दोषे ।

निद्रामुद्रां दधानो निखिलजनगुणध्यानसान्द्रामतन्द्रां,

चिन्तां यां तां वृषाद्रौ विरचयसि रमाकान्त कान्तां शुभान्ताम् ॥ १॥

तां चिन्तां रङ्गक्लृप्तां वृषगिरिशिखरे सार्थयन् रङ्गनाथ,

श्रीवत्सं वा विभूषां व्रणकिणमहिराट्सूरिक्लृप्तापराधम् ।

धृत्वा वात्सल्यमत्युज्ज्वलयितुमवने सत्क्रतौ बद्धदीक्षो,

बध्नन्स्वीयाङ्घ्रियूपे निखिलनरपशून् गौणरज्ज्वाऽसि यज्वा ॥ २॥

ज्वालारावप्रनष्टासुरनिवहमहाश्रीरथाङ्गाब्जहस्तं,

श्रीरङ्गे चिन्तितार्थान्निजजनविषये योक्तुकामं तदर्हान् ।

द्रष्टुं दृष्ट्या समन्ताज्जगति वृषगिरेस्तुङ्गशृङ्गाधिरूढं,

दुष्टादुष्टानवन्तं निरुपधिकृपया श्रीनिवासं भजेऽन्तः ॥ ३॥

अन्तः कान्तश्श्रियो नस्सकरुणविलसद्दृक्तरङ्गैरपाङ्गैः,

सिञ्चन्मुञ्चन्कृपाम्भःकणगणभरितान्प्रेमपूरानपारान् ।

रूपं चापादचूडं विशदमुपनयन् पङ्कजाक्षं समक्षं,

धत्तां हृत्तापशान्त्यै शिशिरमृदुलतानिर्जिताब्जे पदाब्जे ॥ ४॥

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अब्जेन सदृशि सन्ततमिन्धे हृत्पुण्डरीककुण्डे यः ।

जडिमार्त आश्रयेऽद्भुतपावकमेतं निरिन्धनं ज्वलितम् ॥ ५॥

ज्वलितनानानागशृङ्गगमणिगणोदितसुपरभागक,

घननिभाभाभासुराङ्गक वृषगिरीश्वर वितर शं मम ।

सुजनतातातायिताखिलहितसुशीतलगुणगणालय,

विसृमरारारादुदित्वररिपुभयङ्करकरसुदर्शन ॥ ६॥

सकलपापापारभीकरघनरवाकरसुदर सादरम्,

अवतु मामामाघसम्भृतमगणनोचितगुण रमेश्वर ।

तव कृपा पापाटवीहतिदवहुताशनसमहिमा ध्रुवम्,

इतरथाथाथारमस्त्यघगणविमोचनमिह न किञ्चन ॥ ७॥

नगधराराराधने तव वृषगिरीश्वर य इह सादर-,

रचितनानानामकौसुमतरुलसन्निजवनविभागज- ।

सुमकृतां तां तां शुभस्रजमुपहरन् सुखमहिपतिर्गुरुः,

अतिरयायायासदायकभवभयानकशठरिपोः किल ॥ ८॥

निगमगा गा गायता यतिपरिबृढेन तु रचय पूरुष,

जितसभो भो भोगिराङ्गिरिपतिपदार्चनमिति नियोजितः ।

इह परं रंरम्यते स्म च तदुदितव्रणचुबुकभूषणे,

इह रमे मे मेघरोचिषि भवति हारिणि हृदयरङ्गग ॥ ९॥

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गतभये ये ये पदे तव रुचियुता भुवि वृषगिरीश्वर,

विदधते ते ते पदार्चनमितरथा गतिविरहिता इति ।

मतिमता तातायिते त्वयि शरणतां हृदि कलयता परि-,

चरणया यायाऽऽयता तव फणिगणाधिपगुरुवरेण तु ॥१०॥

विरचितां तांतां वनावलिमुपगते त्वयि विहरति द्रुम-,

नहनगाङ्गां गामिव श्रियमरचयत्तव स गुरुरस्य च ।

तदनु तान्तां तां रमां परिजनगिरा द्रुतमवयतो निज-,

शिशुदशाशाशालिनीमपि वितरतो वर वितर शं मम ॥११॥

ममतया यायाऽऽविला मतिरुदयते मम सपदि तां हर,

करुणया याया शुभा मम वितर तामयि वृषगिरीश्वर ।

सदुदयायायासमृच्छसि न दरमप्यरिविदलनादिषु,

मदुदयायायासमीप्ससि न तु कथं मम रिपुजयाय च ॥१२॥

मयि दयाया यासि केन तु न पदतां ननु निगद तन्मम,

मम विभो भो भोगिनायकशयन मे मतमरिजयं दिश ।

परम याया या दया तव निरवधिं मयि झटिति तामयि,

सुमहिमा मा माधव क्षतिमुपगमत्तव मम कृतेऽनघ ॥१३॥

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घटितपापापारदुर्भटपटलदुर्घटनिधनकारण,

रणधरारारात्पलायननिजनिदर्शितबहुबलायन ।

दरवरारारावनाशन मधुविनाशन मम मनोधन,

रिपुलयायायाहि पाहि न इदमरं मम कलय पावन ॥१४॥

सुतरसासासारदृक्ततिरतिशुभा तव निपततान्मयि,

सहरमो मोमोत्तु सन्ततमयि भवान्मयि वृषगिरावपि ।

प्रतिदिनं नंनम्यते मम मन उपेक्षिततदपरं त्वयि,

तदरिपापापासनं कुरु वृषगिरीश्वर सततमुज्ज्वल ॥१५॥

उज्ज्वलवेङ्कटनाथस्तोत्रं पठतां ध्रुवाऽरिविजयश्रीः ।

श्रीरङ्गोक्तं लसति यदमृतं सारज्ञहृदयसारङ्गे ॥१६॥

॥ इति उज्ज्वलवेङ्कटनाथस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

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