श्री कीलक स्तोत्र ( Sri Kilaka Stotram ) Shri Keelaka Stotram

श्री कीलक स्तोत्र [ Sri Kilaka Stotram & Shri Keelaka Stotram ]

श्री कीलक स्तोत्रम के फ़ायदे : sri kilaka stotram ke fayde in hindi :श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ में अर्गला स्तोत्र के उपरान्त ‘कीलक”स्तोत्र का पाठ किया जाता है। कीलक स्त्रोत्र के विषय में अनेको भ्रांतियां समाज में उपस्थित हैं। प्राय: यह कह कर कीलक स्त्रोत्र के पाठ या स्तवन को हतोत्साहित किया जाता है की यदि कीलक का पाठ सही विधि या उसका अभिप्राय उपयुक्त प्रकार से समझे बिना किया जाये तो वह फलदायी नहीं होता अपितु हानि पहुंचता है । मार्कण्डेय ऋषि जी ने यह स्थापित किया की अन्य मंत्रों का जप न करके केवल दुर्गा सप्तशती का पाठ करके देवी की स्तुति करते हैं, उन्हें स्तुति मात्र से ही सत्, चित और आनन्द की प्राप्ति होती है। ऐसे भक्तों को अपने कार्य की सिद्धि के लिये मंत्र, औषधि तथा अन्य किसी साधन के उपयोग की जरूरत नहीं रह जाती है । श्री कीलक स्तोत्रम, sri kilaka stotram in hindi, kilaka stotram in hindi, sri kilaka stotra in hindi, श्री कीलक स्तोत्र, कीलक स्तोत्रम, श्री कीलक स्तोत्रम के फ़ायदे, sri kilaka stotram ke fayde in hindi, श्री कीलक स्तोत्रम के लाभ, sri kilaka stotram ke labh in hindi, sri kilaka stotram benefits in hindi, sri kilaka stotram in mantra, sri kilaka stotram mp3 download, sri kilaka stotram pdf in hindi, sri kilaka stotram in sanskrit, sri kilaka stotram lyrics in hindi, sri kilaka stotram in telugu, sri kilaka stotram in kannada, sri kilaka stotram in tamilआदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 7821878500 shri keelaka stotram by acharya pandit lalit sharma

श्री कीलक स्तोत्रम !! sri kilaka stotram in hindi

॥ कीलकस्तोत्रम् ॥

ॐ अस्य श्रीकीलकमन्त्रस्य शिवऋषिः,

अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहासरस्वती देवता,

श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।

ॐ नमश्चण्डिकायै ।

मार्कण्डेय उवाच ।

ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे ।

श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे ॥ १॥

सर्वमेतद्विजानीयान्मन्त्राणामपि कीलकम् ।

सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जप्यतत्परः ॥ २॥

सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि कर्माणि सकलान्यपि ।

एतेन स्तुवतां देवीं स्तोत्रवृन्देन भक्तितः ॥ ३॥

न मन्त्रो नौषधं तस्य न किञ्चिदपि विद्यते ।

विना जप्येन सिद्ध्येत्तु सर्वमुच्चाटनादिकम् ॥ ४॥

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समग्राण्यपि सेत्स्यन्ति लोकशङ्कामिमां हरः ।

कृत्वा निमन्त्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम् ॥ ५॥

स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुह्यं चकार सः ।

समाप्नोति स पुण्येन तां यथावन्निमन्त्रणाम् ॥ ६॥

सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्वमेव न संशयः ।

कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः ॥ ७॥

ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति ।

इत्थं रूपेण कीलेन महादेवेन कीलितम् ॥ ८॥

यो निष्कीलां विधायैनां चण्डीं जपति नित्यशः ।

स सिद्धः स गणः सोऽथ गन्धर्वो जायते ध्रुवम् ॥ ९॥

न चैवापाटवं तस्य भयं क्वापि न जायते ।

नापमृत्युवशं याति मृते च मोक्षमाप्नुयात् ॥ १०॥

ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत ह्यकुर्वाणो विनश्यति ।

ततो ज्ञात्वैव सम्पूर्णमिदं प्रारभ्यते बुधैः ॥ ११॥

सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने ।

तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जप्यमिदम् शुभम् ॥ १२॥

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शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः ।

भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत् ॥ १३॥

ऐश्वर्यं तत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यमेव च ।

शत्रुहानिः परो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः ॥ १४॥

चण्डिकां हृदयेनापि यः स्मरेत् सततं नरः ।

हृद्यं काममवाप्नोति हृदि देवी सदा वसेत् ॥ १५॥

अग्रतोऽमुं महादेवकृतं कीलकवारणम् ।

निष्कीलञ्च तथा कृत्वा पठितव्यं समाहितैः ॥ १६॥

॥ इति श्रीभगवत्याः कीलकस्तोत्रं समाप्तम् ॥

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