Shri Rinmochak Mangal Stotra || श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्रम || Shri Rinmochan Mangal Stotra

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श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्रम || Shri Rinmochak Mangal Stotra

Shri Rinmochak Mangal Stotra स्कन्द पुराण से लिया गया हैं ! Shri Rinmochak Mangal Stotra भगवान श्री हनुमान जी को समर्पित है ! जिस भी जातक के बहुत ऋण चढ़ गया हो यानी की कर्जा बहुत हो गया हो तो वह जातक श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करता है तो श्री हनुमान जी के आशीवार्द और कृपा से उस जातक का कर्जा यानी की ऋण उतने लग जायेगा ! जो भी व्यक्ति श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करता है उस जातक के जीवन पर किसी भी प्रकार का ऋण नही लेना पड़ेगा ! यदि आप नियमित जाप नही कर सकते तो आप Shri Rinmochak Mangal Stotra का मंगलवार के दिन पाठ कर सकते हैं.जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Shri Rinmochak Mangal Stotra By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री ऋणमोचक मंगल स्तोत्रम || Shri Rinmochak Mangal Stotra

|| श्रीगणेशाय नमः||

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।

स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥१॥

लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।

धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥२॥

अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।

व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥३॥

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एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत ।

ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात ॥४॥

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम ।

कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम ॥५॥

स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः ।

न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित ॥६॥

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अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल ।

त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय ॥७॥

ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः ।

भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥८॥

अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः ।

तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात ॥९॥

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विरिं चिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा ।

तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः ॥१०॥

पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः ।

ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः ॥११॥

एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम ।

महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा ॥१२॥

॥ इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम सम्पूर्णम् ॥

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