वेदोक्तं रात्रिसूक्तम् || Vedoktam Ratrisuktam

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वेदोक्तं रात्रिसूक्तम् || Vedoktam Ratrisuktam

ऋग्वेद के दशम मण्डल का १२७वाँ सूक्त रात्रिसूक्त कहलाता है। इसमें आठ ऋचाएँ पठित हैं, जिनमें रात्रिदेवी की महिमा का गान किया गया है। इस सूक्त में बताया गया है कि रात्रिदेवी जगत के समस्त जीवों के शुभाशुभ कर्मों की साक्षी हैं तथा तदनुरूप फ़ल प्रदान करती हैं। ये सर्वत्र व्याप्त हैं और अपनी ज्ञानमयी ज्योति से जीवों के अज्ञानान्धकार का नाश कर देती हैं। करुणामयी रात्रिदेवी के अंक में सुषुप्तावस्था में समस्त जीवनिकाय सुखपूर्वक सोया रहता है। रात्रि सूक्त आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें :9667189678 Vedoktam Ratrisuktam By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi.

वेदोक्तं रात्रिसूक्तम् || Vedoktam Ratrisuktam

रात्रीति सूक्तस्य कुशिक ऋषिः रात्रिर्देवता, गायत्रीच्छन्दः,

श्रीजगदम्वा प्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठादौ जपे विनियोगः ।।

ॐ रात्री व्यख्यदायति पुरुत्रा देव्यक्षभिः ।

विश्वा अधि श्रियोऽधित ॥ १॥

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ओर्बप्रा अमर्त्त्या निवतो देव्युद्वतः ।

ज्योतिषा वाधते तमः ॥ २॥

निरु स्वसारम्स्कृतोषसं देव्यायती ।

अपेदुहासते तमः ॥ ३॥

सा नो अद्य यस्या वयं नितेयामन्यविक्ष्महि ।

वृक्षेण् वसतिं वयः ॥ ४॥

नि ग्रामासो अविक्षत निपद्वन्तो निपक्षिणः ।

नि श्येनासश्चिदर्थिनः ॥ ५॥

यावया वृक्यं वृकं यवयस्तेनमूर्म्म्ये ।

अथा नः सुतरा भव ॥ ६॥ उप मा पेपिशत्तमः कृष्णं व्यक्तमस्थित ।

उष ऋणेव यातय ॥ ७॥

उप ते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितर्द्दिवः ।

रात्रि स्तोमं न जिग्युषे ॥ ८॥

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इति ऋग्वेदोक्तं रात्रिसुक्तं समाप्तं ।।

(सामविधान ब्राह्मण, ३-८-२)

ॐ रात्रिं प्रपद्ये पुनर्भूं मयोभूं कन्यां

शिखण्डिनीं पाशहस्तां युवतीं कुमारिणीमादित्यः

श्रीचक्षुषे वान्तः प्राणाय सोमो गन्धाय

आपः स्नेहाय मनः अनुज्ञाय पृथिव्यै शरीरं ॥

।। इति सामविधानब्राह्मणोक्तं रात्रिसूक्तं ।।

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